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चित्र परिचय 4
मृषावाद का स्वरूप (1)
मृषावाद का स्वरूप बताते हुए शास्त्रकार ने सर्वप्रथम नास्तिकवाद का वर्णन किया है।
Illustration No. 4
नास्तिकवाद - नास्तिक मतावलम्बी जीव (आत्मा) को नहीं मानते। उनकी मान्यता है कि आत्मा जैसी कोई भी सत्ता इस जगत् में नहीं है। यह शरीर पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और आकाश - इन पाँच पंचभूतों से मिलकर बना है। पृथ्वी से हड्डी, जल से रक्त, तेजस् (अग्नि) से पाचन तन्त्र, वायु से श्वासोच्छ्वास और आकाश से रोम छिद्रों का निर्माण हुआ है। वे नास्तिकवादी स्वर्ग, नरक, जीवात्मा के अस्तित्व को भी स्वीकार नहीं करते हैं।
असद्भाववाद - इन मतावलम्बियों का यह मानना है कि सर्वप्रथम ब्रह्मा ने जल का निर्माण किया और उसमें बीज डाला, बीज सूर्य के सदृश्य स्वर्णमय अण्डा बना । फिर स्वयं ही संकल्प रूप ध्यान से अण्डे के दो टुकड़े किये। उन दो टुकड़ों में से ऊपर के टुकड़े से स्वर्ग और नीचे के टुकड़े से पृथ्वी बनाई । अण्डे के मध्य भाग से आकाश, आठों दिशाएँ और समुद्र का निर्माण किया ।
- सूत्र 47, पृ. 81
कुछ प्राचीन शास्त्रों में असद्भाववाद की व्याख्या इस प्रकार दी गई है - सर्वप्रथम इस असत् जगत् में अंकुरित बीज रूपी स्थूल आकार की रचना हुई। वह बीज आगे चलकर अण्डा बना । अण्डे के दो टुकड़े हुये। एक टुकड़ा (कपाल) चाँदी का और एक टुकड़ा (कपाल) स्वर्णमय बना। चाँदी के टुकड़े से पृथ्वी बनी, स्वर्ण के टुकड़े से स्वर्ग बना। गर्भ के वेष्टन से पर्वत बने, थोड़े पतले वेष्टन से मेघ और तुषार बने, अत्यन्त पतले वेष्टन से नदियों का निर्माण हुआ। अण्डे के अन्दर से जो गर्भ रूप उत्पन्न हुआ, वह सूर्य बना।
FALACIOUS DOCTRINES EXPLAINED (1)
Explaining falsity or wrong faith, the author has described many doctrines. First of them is Nastikavad.
- सूत्र 48, पृ. 90
Nastikavad The followers of this school do not believe in soul (jiva). They believe that anything like soul does not exist in this world. This body is made up of five elements earth, water, fire, air and space. Bones are made from earth element, blood from water, breathing from air, digestive system from fire and body pores from space. Like that of soul, the Nastikavadis do not accept the existence of any heaven and hell. - Sutra-47, page 81 Asadbhavavad - The followers of this doctrine believe that Brahma first of all created water and put a seed in it. That seed turned into a golden egg like the sun. Brahma then did penance within that egg for one year. He broke the egg into two parts with the power of his meditation. He turned the upper part into heaven and made the earth from the lower part. Sky, eight cardinal directions and the oceans, the eternal place of water, were created from the middle part of the egg.
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Some ancient texts define Asadbhavavad as In this universe first of all a gigantic sprouted seed was created. This seed turned into an egg and then it split into two pieces, one of silver and the other of gold. The silver piece turned into the earth and the golden one into heaven. The thicker yoke matter turned into mountains and thinner into clouds and snow. Even more thin matter turned into rivers. The fetus born out of the egg became the sun.
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-Sutra-48, page 90
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