SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ) ))))558 ) ) )) ); )) मनुष्य ))) ) )) ) 4 योनि : एक समान वर्ण गंध रस स्पर्श वाले उत्पात्त स्थान को योनि कहते हैं। एक ही योनि में अलग-अलग 卐 रंग के, अलग अलग प्रकार के जीव उत्पन्न होते हैं, उसे कुल कहते हैं। इसलिए योनि से कुल ज्यादा ही होते हैं। " म सभी जीवों की ८४ लाख योनि हैं - ॐ कुलकोटि क्या हैं? गोत्र कर्म के उदय से प्राप्त वंश 'कुल' कहलाते हैं। उन कुलों की विभिन्न कोटियाँ (श्रेणियाँ) कुलकोटि कही जाती हैं। एक जाति में विभिन्न अनेक कुल होते हैं। केवल मनुष्यों में ही नहीं, अपितु प्रत्येक जीव योनि में 'कुल' होते हैं। समस्त संसारी जीवों के मिलकर एक करोड़ साढ़े सत्तानवे लाख करोड़ कुल शास्त्रों में कहे गये हैं। कुलों की संख्या इस प्रकार है - १२ लाख कुलकोटियाँ देव २६ लाख कुलकोटियाँ नारक २५ लाख कुलकोटियाँ जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच १२३ लाख कुलकोटियाँ स्थलचर चतुष्पद पंचेन्द्रिय । तिर्यंच पंचेन्द्रिय १० लाख कुलकोटियाँ स्थलचर उरपरिसर्प पंचेन्द्रिय | ५३३ लाख करोड़ कुल १० लाख कुलकोटियाँ स्थलचर भुजपरिसर्प पंचेन्द्रिय ९ लाख कुलकोटियाँ खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच १२ लाख कुलकोटियाँ चतुरिन्द्रिय तिर्यंच ९ लाख कुलकोटियाँ त्रीन्द्रिय तिर्यंच २४ लाख करोड़ कुल ८ लाख कुलकोटियाँ द्वीन्द्रिय तिर्यंच ७ लाख कुलकोटियाँ पृथ्वीकायिक स्थावर १२ लाख कुलकोटियाँ अप्कायिक स्थावर स्थावर ७ लाख कुलकोटियाँ तेजःकायिक स्थावर ५७ लाख करोड़ कुल ३ लाख कुलकोटियाँ वायुकायिक स्थावर ___७ लाख कुलकोटियाँ वनस्पतिकायिक स्थावर २८ लाख कुलकोटियाँ योग-१,९७,५०,००० करोड़ इनमें से चतुरिन्द्रिय जीवों की यहाँ नव लाख कुलकोटियाँ बताई हैं। जैसे नारक जीव नारक पर्याय का ॥ अन्त हो जाने पर पुनः तदनन्तर भव में नरक में जन्म नहीं लेते, वैसा नियम तिर्यंच पंचेन्द्रिय व चतुरिन्द्रिय आदि के लिए नहीं है। ये जीव मरकर बार-बार चतुरिन्द्रिय आदि में जन्म लेते रहते हैं। संख्यात काल तक ॐ अर्थात् संख्यात हजार वर्षों जितने सुदीर्घ काल तक वे चतुरिन्द्रिय पर्याय में ही जन्म-मरण करते रहते हैं। ' Elaboration-A place of origin having same appearance, smell, taste and touch in called Yoni. Different types of living beings with change of ))))))))))))))) ) ))) ) )) )) )))) ))) )) )) )))))) )) श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (64) Shri Prashna Vyakaran Sutra 5555 By 355555555555555555555555555554 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy