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चित्र - परिचय 3
पंचेन्द्रिय से ऐकेन्द्रिय गतियों में हिंसा के कुफल
यहाँ मनुष्य भव से लेकर ऐकेन्द्रिय जीवों तक के दुःखों का वर्णन किया गया है। हिंसा के फलस्वरूप उन्हें विभिन्न योनियों में कितने दारुण कष्ट सहने पड़ते हैं।
Illustration No. 3
(1) तिर्यच पंचेन्द्रिय के दुःख तिर्यच योनि के जीव अपना दुःख, वेदना बोलकर नहीं बता सकते। उन पर भारी बोझ लादा जाता है। नाक मुँह का छेदन-भेदन किया जाता है। पक्षियों को पिंजरे में बन्द कर दिया जाता है। कुछ जीवों को तो प्रयोगशालाओं में जागृत अवस्था में ही काटकर उनके शरीर के अन्दर की आँते, हृदय, यकृत आदि निकाल लिये जाते हैं। प्रकार तिथंच योनि में मिलने वाली वेदनायें भी अत्यन्त दुस्सह और भयानक होती हैं।
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(3) ऐकेन्द्रिय जीवों के दुःख- पृथ्वीकाय में उत्पन्न जीवों को कुदाल व हल से विदारण किया जाता है। तेडकाय और वायुकाय में जीवों का स्वकाय और परकाय रूप विविध शस्त्रों से हनन किया जाता है। अप्काय जीवों का जल के प्रवाह को रोककर संधन किया जाता है, जल का मंथन किया जाता है। पेड़ आदि वनस्पति को काटा जाता है। इस प्रकार अनेक ऐकेन्द्रिय फुं जीव अपने दुष्कर्मों के उदय से प्राप्त होने वाले दुःख भोगते हैं।
(2) चौरेन्द्रिय से बेड़न्द्रिय जीवों के दुःख- उपरोक्त पंचेन्द्रिय जीवों की तरह चौरेन्द्रिय से बेइन्द्रिय जीव भी अपने-अपने कुल कोटियों में जन्म लेकर अपने पूर्वकृत पाप कर्मों की अनेकों प्रकार की वेदनायें पाते हुए मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
- सूत्र 34-36, पृ. 59
- सूत्र 37-39, पु. 63
- सूत्र 42, पृ. 70
नोट- पिछले पृष्ठ पर जीवों की वेदनाओं के कुछ उदाहरण दिये गये हैं। इसके अलावा भी वे अनेकों प्रकार से वेदनायें भोगते हैं।
- सूत्र 40, पृ.66
(4) मनुष्य भव के दुःख-हिंसा करने वाले जीव नरक योनि में घोर दुःख पाकर वहाँ से निकलते हैं और तिर्यच योनि 5 होकर फिर मनुष्य बनते हैं। वे प्रायः विकृत शरीर, विकलांगी, कूबड़े, वामन, बहरे, गूँगे, काने, अन्धे, टूटे हाथ और लंगड़ी टॉंग वाले हाते हैं। कई कुष्टादि व्याधि और ज्वरादि रोग से पीड़ित होते हैं। कोई शस्त्र प्रहार से वध किये जाते हैं। कई दुर्बल, दीन, हीन एवं शक्तिरहित होते हैं।
ILL FRUITS OF VIOLENCE IN FIVE TO ONE-SENSED BEINGS The miseries of living beings from humans to one-sensed beings have been described here. How acute is the pain they have to suffer in different forms of life is detailed here.
(1) Miseries of human life- After suffering great pain in hell the living beings indulging in violence leave the hell and reincarnate as humans after getting born once as animals. They are generally with deformed and disabled bodies, or hunchbacked, dwarfs, deaf and dumb, one-eyed or blind, or with damaged limbs. Many of them suffer from leprosy, fever or other diseases. Some are killed with weapons. Many are weak, destitute, lowly and deprived. - Sutra-23-25, page-37
(2) Miseries of five sensed animals - Living beings of animal class cannot express their sorrow and pain by speaking. They are burdened with heavy load. Their nose and mouth are pierced. Birds are trapped in cages. Some animals are even cut and body parts including intestines, heart and lever are removed without using anesthesia. Thus the pain suffered as animal is also terrible and intolerable.
-Sutra-34-36, page-59
(3) Miseries of four to two sensed beings - Like the five sensed animals the four to two-sensed living beings also suffer the fruits of their karmas acquired due to sinful activities of the past when born in their respective categories. They suffer numerous types of torments and die.
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(4) Miseries of one-sensed beings - Earth-bodied beings are crushed with axe and plough. Fire-bodied and air-bodied beings are killed with weapons made of their own class as well as others. Water-bodied beings are killed by blocking the flow of water as well as by agitating water. Trees and
other plant-bodied beings are cut and destroyed in different ways. Thus one-sensed beings suffer miseries due to their acquired karmas.
— Sutra-40, page-66
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-Sutra-37-39, puge-63
Note: Preceding pages contain only a few examples of the miseries of living beings. Besides these, there are many more.
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