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कुरर - गिद्ध - घोर-कट्ठवायसगणेहि य पुणो खरथिर - दढणक्ख - लोहतुंडेर्हि उवइत्ता पक्खाहय - तिक्ख- 5 णक्ख - विक्किण्ण-जिब्भंछिय - णयणणिद्द ओलुग्गविगय-व -वयणा उक्कोसंता य उप्पयंता णिप्पयंता भमंता । ३२. नरक में मानों बहुत दिनों की भूख से पीड़ित हो, जिन्हें कभी भोजन न मिला हो, ऐसे भयावह, भयंकर रूप वाले मदोन्मत्त भेड़िये, शिकारी कुत्ते, गीदड़, कौवे, बिलाव, अष्टापद, चीते, बाघ, केसरी शेर और सिंह घोर गर्जना करते हुए उन नारकों पर टूट पड़ते हैं, अपनी मजबूत दाढ़ों से नारकों के शरीर को काटते हैं, खींचते हैं, अत्यन्त पैने नुकीले नाखूनों से फाड़ते हैं और फिर इधरउधर चारों ओर फेंक देते हैं, जिससे उनके शरीर के जोड़ ढीले पड़ जाते हैं। उनके अंगोपांग विकृत और पृथक् हो जाते हैं। तत्पश्चात् दृढ़ एवं तीक्ष्ण दाढ़ों, नखों और लोहे के समान नुकीली चोंच वाले कंक, टिटहरी और गिद्ध आदि पक्षी तथा घोर कष्ट देने वाले काक पक्षियों के झुण्ड अपनी कठोर, दृढ़ तथा स्थिर लोहमय चोंचों से (उन नारकों के ऊपर) झपट पड़ते हैं, उन्हें अपने पंखों से घायल कर देते हैं, तीखे नाखूनों से उनकी जीभ बाहर खींच लेते हैं और आँखें बाहर निकाल लेते हैं। निर्दयतापूर्वक 5 उनके मुख को नोंच-नोंचकर कुरेदते हैं। इस प्रकार की यातना से पीड़ित वे नारक जीव जोर-जोर से रुदन करते हैं, कभी ऊपर उछलते हैं और फिर नीचे आ गिरते हैं, इधर-उधर चक्कर काटते हैं। 32. In the hell, the ferocious, dreadful starving, intoxicated wolves, hounds, jackals, crows, cats, ashtapad, leopards, tigers, lions attack the hellish beings with a roaring sound. They pierce their body with their strong molars, pull them and tear them with their sharp nails. Later they throw their pieces hither and thither and thus loosen the joints in their body. Their limbs become deformed and get separated. Later kank, titehri and vultures and swarm of kaak birds rush towards them with their strong sharp molars, nails, iron like pointed beaks; they injure them with their wings. They take out their tongues with their sharp nails and also extract their eyes. They cruelly bite their faces. The hellish beings weep loudly, jump hither and thither or move about in pain due to such troubles.
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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
विवेचन : वस्तुतः नरक में भेड़िया, बिलाव, सिंह, व्याघ्र आदि तिर्यंच चतुष्पद नहीं होते, किन्तु नरकपाल ही 5 नारकों को त्रास देने के लिए अपनी वैक्रियशक्ति से भेड़िया आदि का रूप बना लेते हैं। नारकों की इस 5 करुणाजनक पीड़ा एवं भयानक यातनाओं का शास्त्रकार ने प्रत्यक्ष देखा वर्णन किया है। इसका एक मात्र प्रयोजन यही है कि मनुष्य हिंसारूप दुष्कर्म से बचे और उसके फलस्वरूप होने वाली यातनाओं का भाजन न बने ।
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प्रस्तुत सूत्र में उक्कोसंता, य उप्पयंता णिप्पयंता भमंता-पाठ से सूचित किया है कि वे ऊँचे उठते हैं। ग्रन्थकारों ने बताया है - जिस नारक के शरीर की जितनी ऊँचाई होती है, वह उतना ही ऊँचा उठता है। जैसे 5 सातवीं नरक के नारकों की उत्कृष्ट ऊँचाई ५०० धनुष, छठी की २५० धनुष यों क्रमशः घटती हुई प्रथम नरक 卐 के नारक जीवों की उत्कृष्ट ऊँचाई ७ धनुष ३ हाथ ६ अंगुल की है।
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