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. ५५८. पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) आत्मानुकम्पक, न परानुकम्पक-कोई पुरुष अपनी आत्मा के
पर अनुकम्पा (दया) करता है, किन्तु दूसरे पर अनुकम्पा नहीं करता (जैसे, जिनकल्पी, प्रत्येकबुद्ध या फ # निर्दय स्वार्थी पुरुष); (२) परानुकम्पक, न आत्मानुकम्पक-कोई दूसरे पर तो अनुकम्पा करता है, किन्तु म अपने ऊपर अनुकम्पा नहीं करता। (मेतार्य मुनि के समान अथवा तीर्थंकर, जो स्वयं कृतकार्य होते हैं;)
(३) कोई आत्मानुकम्पक भी होता है और परानुकम्पक भी (स्थविरकल्पी साधु के समान); तथा ॥ %(४) कोई न आत्मानुकम्पक होता है और न परानुकम्पक (कालशौकरिक के समान)।
558. Manushya (men) are of four kinds-(1) Atmanukampak, na paranukampak—some man has compassion for himself but does not
have compassion for others (like a Jinakalpi, a Pratyek-buddha or a fi cruel selfish person). (2) Paranukampak, na atmanukampak—some man 51 fi has compassion for others but does not have compassion for him self (like fi Ascetic Metarya or a Tirthankar who has attained the blissful state).
(3) Atmanukampak, paranukampak-some man has compassion for himself as well as for others (like a Sthavir-kalpi ascetic). (4) Na atmanukampak, na paranukampak-some man has compassion neither for himself nor for others (like Kaal Shaurik). संवास-पद SAMVAS-PAD (SEGMENT OF SEXUAL GRATIFICATION) __ ५५९. चउबिहे संवासे पण्णत्ते, तं जहा-दिब्बे, आसुरे, रक्खसे, माणुसे।
५६०. चउबिहे संवासे पण्णत्ते, तं जहा-देवे णाममेगे देवीए सद्धिं संवासं गच्छति, देवे , णाममेगे असुरीए सद्धिं संवासं गच्छति, असुरे णाममेगे देवीए सद्धिं संवासं गच्छति, असुरे णाममेगे । असुरीए सद्धिं संवासं गच्छति।
५६१. चउबिहे संवासे पण्णत्ते, तं जहा-देवे णाममेगे देवीए सद्धिं संवासं गच्छति, देवे णाममेगे रक्खसीए सद्धिं संवासं गच्छति, रक्खसे णाममेगे देवीए सद्धिं संवासं गच्छति, रक्खसे णाममेगे रक्खसीए सद्धिं संवासं गच्छति।
५६२. चउबिहे संवासे पण्णत्ते, तं जहा-देवे णाममेगे देवीए सद्धिं संवासं गच्छति, देवे णाममेगे मणुस्सीए सद्धिं संवासं गच्छति, मणुस्से णाममेगे देवीए सद्धिं संवासं गच्छति, मणुस्से णाममेगे मणुस्सीए सद्धिं संवासं गच्छति।
५५९. संवास (स्त्री-पुरुष का सहवास) चार प्रकार का कहा है-(१) दिव्य-संवास, (२) आसुर-संवास, (३) राक्षस-संवास, और (४) मानुष-संवास।
५६०. संवास चार प्रकार का होता है-(१) कोई देव देवियों के साथ संवास करता है, (२) कोई देव असुरियों के साथ, (३) कोई असुर देवियों के साथ, और (४) कोई असुर असुरियों के साथ संवास करता है।
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चतुर्थ स्थान : चतुर्थ उद्देशक
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Fourth Sthaan: Fourth Lesson
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