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________________ 卐 संयम-असंयम-पद SAMYAM-ASAMYAM-PAD (SEGMENT OF DISCIPLINE AND INDISCIPLINE) २२. पंचिंदिया णं जीवा असमारभमाणस्स दसविधे संजमे कज्जति, तं जहा-सोतामयाओ ॐ सोक्खाओ अववरोवेत्ता भवति। सोतामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति। चक्खुमयाओ सोक्खाओ # अववरोवेत्ता भवति। चक्खुमएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति। घाणामयाओ सोक्खाओ अववरोवेत्ता भवति। घाणामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति। जिभामयाओ सोक्खाओ अववरोवेत्ता भवति। जिब्भामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति। फासामयाओ सोक्खाओ अववरोवेत्ता भवति।) फासामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति। २२. पंचेन्द्रिय जीवों का घात नहीं करने वाले साधक के दस प्रकार का संयम होता हैम (१-२) श्रोत्रेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने तथा दुःख का संयोग नहीं करने से, (३-४) चक्षुरिन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने तथा दुःख का संयोग नहीं करने से, ॐ (५-६) घ्राणेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने तथा दुःख का संयोग नहीं करने से, (७-८) रसनेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने तथा दुःख का संयोग नहीं करने से। (९-१०) स्पर्शनेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग नहीं करने तथा दुःख का संयोग नहीं करने से। 22. A being not indulging in harming or killing of five-sensed beings has ten kinds of discipline--That related to not terminating the pleasure derived through and not enforcing the misery experienced through(1,2) shrotrendriya (sense organ of hearing), (3,4) chakshurindriya (sense organ of seeing). (5,6) ghranendriya (sense organ of smell), (7,8) rasanendriya (sense organ of taste) and (9,10) sparshendriya (sense organ of touch). २३. पंचिंदिया णं जीवा समारभमाणस्स दसविधे असंजमे कज्जति, तं जहा-सोतामयाओ सोक्खाओ ववरोवेत्ता भवति। सोतामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति। चक्खुमयाओ सोक्खाओ ववरोवेत्ता भवति। चक्खुमएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति। घाणामयाओ सोक्खाओ ववरोवेत्ता भवति। घाणामएणं, ॐ दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति। जिब्भामयाओ सोक्खाओ ववरोवेत्ता भवति। जिब्भामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति। फासामयाओ सोक्खाओ ववरोवेत्ता भवति। फासामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति। २३. पंचेन्द्रिय जीवों का घात करने वाले व्यक्ति के दस प्रकार का असंयम होता है, जैसे(१-२) श्रोत्रेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग करने और दुःख का संयोग करने से। 卐 (३-४) चक्षुरिन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग करने और दुःख का संयोग करने से। ॐ (५-६) घ्राणेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग करने और दुःख का संयोग करने से। (७-८) रसनेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग करने और दुःख का संयोग करने से। ऊ (९-१०) स्पर्शनेन्द्रिय-सम्बन्धी सुख का वियोग करने और दुःख का संयोग करने से। नागनागनाना स्थानांगसूत्र (२) (480) Sthaananga Sutra (2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002906
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages648
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size20 MB
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