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5555555555555555555555555555555555558 (4) Vinayavadi-samavasaran-those believe that salvation can be
achieved only through modest behaviour towards all beings. * ५३१. णेरइयाणं चत्तारि वादिसमोसरणा पण्णत्ता, तं जहा-किरियावादी, जाव म (अकिरियावादी, अण्णाणियावादी) वेणइयावादी। ५३२. एवमसुरकुमाराणवि जाव थणियकुमाराणं। एवं-विगलिंदियवज्जं जाव वेमाणियाणं।
५३१. नारकों के चार समवसरण हैं-(१) क्रियावादि-समवसरण, (२) अक्रियावादी-समवसरण, (३) अज्ञानवादि-समवसरण, और (४) विनयवादि-समवसरण। ५३२. इसी प्रकार असुरकुमारों से ॐ लेकर स्तनितकुमारों तक चार-चार वादिसमवसरण कहे हैं। इसी प्रकार विकलेन्द्रियों को छोड़कर + वैमानिक-पर्यन्त सभी दण्डकों के चार-चार समवसरण जानना चाहिए।
531. Naaraks (infernal beings) have four vadi-samavasaran 卐 (sects)-(1) Kriyavadi-samavasaran, (2) Akriyavadi-samavasaran, 卐 (3) Ajnanavadi-samavasaran and (4) Vinayavadi-samavasaran. 532. In
the same way divine beings from Asur Kumars to Stanit Kumars have four vadi-samavasaran (sects) each. In the same way except vikalendriya (two to four sensed) beings all beings belonging to all
dandaks (places of suffering) up to Vaimanik gods have four vadi4 samavasaran (sects) each.
विवेचन-जहाँ पर विभिन्न मत वाले एकत्र हों, उस स्थान को समवसरण कहते हैं। भगवान महावीर के समय में सूत्रोक्त चारों प्रकार के वादियों के समवसरण (समुदाय) थे और उनके भी उत्तर भेद बहुत ॐ थे, जैसे-(१) क्रियावादियों के १८०, (२) अक्रियावादियों के ८४, (३) अज्ञानवादियों के ६७, और फ़
(४) विनयवादियों के ३२ उत्तरभेद। ॐ इस प्रकार भगवान महावीर के समय में तीन सौ तिरेसठ वादियों के होने का उल्लेख श्वेताम्बर ॥ 9 और दिगम्बर दोनों सम्प्रदाय के ग्रन्थों में पाया जाता है।
Elaboration-A place where people belonging to different schools of thought (vaadi) congregate is called samavasaran. During the period of Bhagavan Mahavir aforesaid four sects existed. These four sects had numerous branches each-(1) Kriyavadis-180 sub-sects, (2) Akriyavadi84 sub-sects, (3) Ajnanavadi-67 sub-sects and (4) Vinayavadi-32 subsects. The mention of these three hundred sixty three vaadis (sects) contemporary to Bhagavan Mahavir is available in both Digambar as well as Shvetambar scriptures. मेघ-पद MEGH-PAD (SEGMENT OF CLOUDS)
५३३. चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा-गज्जित्ता णाममेगे णो वासित्ता, वासित्ता णाममेगे णो # गज्जित्ता, एगे गज्जित्तावि वासित्तावि, एगे णो गज्जित्ता णो वासित्ता। | स्थानांगसूत्र (२)
(16)
Sthaananga Sutra (2)
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