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५२८. पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई पुरुष आख्यायक (शास्त्र व्याख्याता) तो होता है, किन्तु उञ्छजीविकासम्पन्न (निर्दोष भिक्षाचरी करने वाला) नहीं होता है; (२) कोई उञ्छजीविकासम्पन्न तो होता है, किन्तु आख्यायक नहीं; (३) कोई आख्यायक भी होता है और उञ्छजीविकासम्पन्न भी, तथा 5 (४) कोई न आख्यायक ही होता है और न उञ्छजीविकासम्पन्न। ___528. Purush (men) are of four kinds-(1) Some person (ascetic) is; akhyayak (commentator of scriptures) but not unchhajivika sampanna (faultless in alms-seeking). (2) Some person is unchhajivika sampanna but not akhyayak. (3) Some person is akhyayak as well as unchhajivika sampanna. (4) Some person is neither akhyayak nor unchhajivika sampanna. वृक्ष-विक्रिया-पद VRIKSHA-VIKRIYA-PAD
(SEGMENT OF DEVELOPMENT OF A TREE) ५२९. चउबिहा रुक्खविगुव्वणा पण्णत्ता, तं जहा-पवालत्ताए, पत्तत्ताए, पुष्फत्ताए, फलत्ताए।
५२९. वृक्षों की विक्रिया (विकास) चार प्रकार की होती है-(१) प्रवाल (कोंपल) के रूप से, (२) पत्र के रूप से, (३) पुष्प के रूप से, और (४) फल के रूप से।
529. Vriksha-vikriya (development of a tree) is of four kinds (1) context of praval (sprouts), (2) in context of patra (leaves), (3) in context of pushp (flowers) and (4) in context of phal (fruits). वादि-समवसरण-पद VAADI-SAMAYASARAN-PAD (SEGMENT OF SECTS)
५३०. चत्तारि वादिसमोसरणा पण्णत्ता, तं जहा-किरियावादी, अकिरियावादी, अण्णाणियावादी, वेणइयावादी।
५३०. वादियों के चार समवसरण (समुदाय) हैं-(१) क्रियावादि-समवसरण-पुण्य-पाप रूप क्रियाओं को मानने वाले आस्तिकों का समुदाय, (२) अक्रियावादि-समवसरण-पुण्य-पापरूप क्रियाओं के को नहीं मानने वाले नास्तिकों का समवसरण. (३) अज्ञानवादि-समवसरण-अज्ञान को ही शान्ति या सुख का कारण मानने वालों का और (४) विनयवादि-समवसरण-सभी जीवों की विनय करने से मुक्ति के मानने वालों का समुदाय।
530. Vadi-sanavasaran (gathering of schools of thought; sects) are of four kinds-(1) Kriyavadi-samavasaran-those who believe in salvation through righteous and unrighteous activity (astik), (2) Akriyavadisamavasaran-those who do not believe in salvation through righteous and unrighteous activity (nastik), (3) Ajnanavadi-samavasaran—those 45 who consider ignorance to be the cause of bliss and peace and
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चतुर्थ स्थान : चतुर्थ उद्देशक
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Fourth Sthaan : Fourth Lesson
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