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4i (3) Some person is ignoble and is accepted as noble-like by others. $1 (4) Some person is ignoble and is accepted as ignoble-like by others.
विवेचन-श्रेयान् का अर्थ है-श्रेष्ठ अथवा प्रशंसा योग्य। पापीयान् का अर्थ है-पापात्मा और निन्दनीय। श्रेयान्मन्य का अर्थ है-दूसरों द्वारा ऐसा माना जाता है अथवा स्वयं को ऐसा मानता है। वास्तव में वह कुछ और होता है, परन्तु लोगों में ऐसा माना जाता है। श्रेयान्सदृश का अर्थ है-सर्वथा श्रेष्ठ नहीं है, किन्तु श्रेष्ठ के समान। कुछ आंशिक श्रेष्ठ होते हैं, किन्तु अपने आपको अधिक श्रेष्ठ मानते हैं। कुछ अल्प पापी होते हैं, ॐ परन्तु अपने आपको बहुत अधिक पापी मानते हैं। यह सब कथन द्रव्य और भाव की अपेक्षा , अन्तर और बाह्य की अपेक्षा से अनेक चौभंगियों द्वारा कहा जा सकता है। (हिन्दी टीका, पृ. १०४०-४१)
___Elaboration-Shreyan means noble, good or praiseworthy. Paapiyan Si means ignoble, sinner or reprehensible. Shreyanmanya means accepted
by himself or others as noble. In fact such a person is different than what he is considered. Shreyan-sadrash means noble-like but not exactly noble. Some people are partially noble but believe themselves to be more noble than what they are. Some are partially sinful but believe themselves to be more ignoble than they are. All these statements can be elaborated into many quads from physical and mental or outer and inner angles. (Hindi Tika pp. 1040-1041) 37764742-46 AKHYAYAK-PAD (SEGMENT OF COMMENTATOR)
५२७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-आघवइत्ता णाममेगे णो पविभावइत्ता, पविभावइत्ता णाममेगे णो आघवइत्ता, एगे आघवइत्तावि पविभावइत्तावि, एगे णो आघवइत्ता णो म पविभावइत्ता।
५२७. पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई पुरुष प्रवचन का आख्यायक (कथन करने वाला) 卐 होता है, किन्तु प्रभावक (शासन की प्रभावना करने वाला) नहीं होता; (२) कोई प्रभावक तो होता है,
किन्तु आख्यायक नहीं; (३) कोई आख्यायक भी होता है और प्रभावक भी, तथा (४) कोई न (श्रमण) ॐ आख्यायक होता है और न प्रभावक ही।
527. Purush (men) are of four kinds-(1) Some person is akhyayak (commentator of scriptures) but not prabhavak (popularizer of religious order). (2) Some person is prabhavak but not akhyayak. (3) Some person is akhyayak as well as prabhavak. (4) Some person is neither akhyayak nor prabhavak.
५२८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-आघवइत्ता णाममेगे णो उंछजीविसंपण्णे, उंछजीविसंपण्णे णाममेगे णो आघवइत्ता, एगे आघवइत्तावि उंछजीविसंपण्णेवि, एगे णो आघवइत्ता ॐ णो उंछजीविसंपण्णे।
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| स्थानांगसूत्र (२)
(14)
Sthaananga Sutra (2)
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