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ॐ के कूटों पर यों कुल छप्पन दिशा कुमारियाँ कूटों पर स्थित अपने-अपने आवासों में रहती है। तीर्थंकरों . म के जन्म अवसर सर्वप्रथम में आकर उनका सूतिका कर्म आदि सम्पन्न कराती है। (जम्बूद्वीप. वक्ष ५)
Elaboration-The dividing point of directions east-west and northsouth is Meru mountain. The counting of continents starts from Jambudveep. The seventeenth continent from Jambudveep is Ruchakavar dveep. At the center of this continent is a circular mountain called Ruchak. In its four directions there are eight peaks each. On these 32 peaks reside 32 Dishakumaris. There are 8 Dishakumaris on the peaks of Gajadant mountain in Adholok, 8 on the peaks in Nandanavan in Urdhvalok, 4 on peaks of Ruchak mountains in intermediate directions and 4 on the peaks of the central Ruchak mountain. Thus a total of 56 Dishakumaris reside in their respective abodes on these peaks. They all arrive for performing the post birth rituals (sutika karma) when a Tirthankar is born.
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कल्प-पद KALP-VIMAAN-PAD (SEGMENT OF DIVINE REALMS)
१०१. अट्ठ कप्पा तिरिय-मिस्सोववण्णगा पण्णत्ता, तं जहा-सोहम्मे, (ईसाणे, सणंकुमारे, माहिंदे, बंभलोगे, लंतए महासुक्के), सहस्सारे।
१०१. तिर्यग्-मिश्रोपन्नक (तिर्यंच और मनुष्य दोनों के उत्पन्न होने के योग्य) कल्प आठ हैं, जैसेॐ (१) सौधर्म, (२) ईशान, (३) सनत्कुमार, (४) माहेन्द्र, (५) ब्रह्मलोक, (६) लान्तक, (७) महाशुक्र, म (८) सहस्रार।
101. There are said to be eight tiryagmishropannak kalps (the divine realms where animals and human beings both can reincarnate) (1) Saudharma, (2) Ishan, (3) Sanatkumar, (4) Maahendra, (5) Brahmalok, (6) Lantak, (7) Mahashukra and (8) Sahasrar.
विवेचन-इस सूत्र का भाव है-आठवें देवलोक तक तिर्यंच और मनुष्य दोनों ही जा सकते हैं, किन्तु + नौवें से छव्वीसवें देवलोक तक केवल मनुष्यगति का जीव ही उत्पन्न होता है।
Elaboration—Beyond these eight Devaloks only human beings can \i reincarnate up to the twenty sixth one.
१०२. एतेसु णं अट्ठसु कप्पेसु अट्ठ इंदा पण्णत्ता, तं जहा-सक्के, (ईसाणे, सणंकुमारे, माहिंदे, बंभे, लंतए, महासुक्के), सहस्सारे। १०३. एतेसि णं अट्ठण्हं इंदाणं अट्ठ परियाणिया विमाणा # पण्णत्ता, तं जहा-पालए, पुप्फए, सोमणसे, सिरिवच्छे, णंदियावत्ते, कामकमे, पीतिमणे, मणोरमे।
१०२. इन आठों कल्पों में आठ इन्द्र हैं, जैसे-(१) शक्र, (२) ईशान, (३) सनत्कुमार, ॐ (४) माहेन्द्र, (५) ब्रह्म, (६) लान्तक, (७) महाशुक्र, (८) सहस्रार। १०३. इन आठों इन्द्रों के
स्थानांगसूत्र (२)
(398)
Sthaananga Sutra (2)
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