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फ़ विवेचन-जिन कारणों व लक्षणों से भूत, भविष्य तथा वर्तमान में होने वाली शुभाशुभ घटनाओं का
ज्ञान प्राप्त किया जाता है, उसे निमित्त शास्त्र कहते हैं। उनका वर्णन करने वाले महाग्रन्थों को महानिमित्त ॐ कहा जाता है। उनके आठ भेद यहाँ बतायें हैं। इनका संक्षेप में वर्णन इस प्रकार है-(१) भौम-भूमि की
स्निग्धता-रूक्षता भूकम्प आदि से सम्बन्धित शुभाशुभ विषयों को जानना। (२) उत्पात-आकस्मिक घटनाओं जैसे उल्कापात रुधिर-वर्षा आदि से शुभाशुभ फल बताना। (३) स्वप्न-स्वप्नों के द्वारा भावी शुभाशुभ जानना। (४) आन्तरिक्ष-सूर्य-चन्द्र-ग्रह आदि आकाशीय घटनाओं को देखने से शुभाशुभ
जानना। (५) अङ्ग-शरीर के अंगों की स्फुरणा देखकर शुभाशुभ जानना। (६) स्वर-षड्ज आदि सात ॐ स्वर अथवा ईडा-पिंगला-सुषुम्ना तीन स्वर या पक्षियों के स्वर को सुनकर शुभाशुभ जानना। + (७) लक्षण-स्त्री-पुरुषों के शरीर-गत चक्र आदि लक्षणों को देखकर शुभाशुभ जानना। (८) व्यंजन
तिल, मसा, रेखा आदि देखकर शुभाशुभ जानना। लक्षण शरीर के साथ उत्पन्न होते हैं, व्यंजन बाद में। ज्ञाता सूत्र आदि में अष्टांग महा निमित्त वेत्ताओं का वर्णन आता है। साधारण मनुष्य के ३२ लक्षण तथा
तीर्थंकर चक्रवर्ती के १००८ शुभ लक्षणों का वर्णन इसी शास्त्र का विषय है। 41 Elaboration-English explanation of terms already covered. Details 4
about augurs is also available in Jnata Sutra and other scriptures. The 32 auspicious signs of a common man and 1008 auspicious signs of a Tirthankar and Chakravarti are also subjects discussed in books of augury. वचनविभक्ति-पद VACHAN-VIBHAKTI-PAD
(SEGMENT OF INFLECTIONS OF WORDS) २४. अट्ठविधा वयणविभत्ती पण्णत्ता, तं जहा
णिद्देसे पढमा होती, बितिया उवएसणे। ततिया करणम्मि कता, चउत्थी संपदाणवे॥१॥ पंचमी य अवादाणे, छट्ठी सस्सामिवादणे। सत्तमी सण्णिहाणत्थे, अट्ठमी आमंतणी भवे॥२॥ तत्थ पढमा विभत्ती, णिद्देसे-सो इमो अहं वत्ति। बितिया उण उवएसे-भण 'कुण व' इमं व तं वत्ति॥३॥ ततिया करणम्मि कया-णीतं व कतं व तेण व मए व। हंदि णमो साहाए, हवति चउत्थी पदाणंमि॥४॥ अवणे गिण्हस तत्तो, इत्तोत्ति वा पंचमी अवादाणे। छट्ठी तस्स इमस्स व, गतस्स वा सामि-संबंधे॥५॥
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अष्टम स्थान
(371)
Eighth Sthaan
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