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________________ 8555555555555555555555555 ) )) )) ) ))))))))5555 )) 4 eight reasons are-(1) I have (in the past) committed a misdeed. (2) I am 卐 (at present) committing a misdeed. (3) I will (in the future) commit a 卐 misdeed. (so, why criticize and reprove ?) (4) (If I do so) I will become disreputable (apkirti). (5) I will be dishonoured (avarnavad). (6) Others will ignore me (avinaya). (7) It will reduce my kirti (already acquired 4 prestige due to worldly, wealth). (8) It will reduce my yash (prestige 4i gained due to virtues). .१०. (क) अट्टहिं ठाणेहिं मायी मायं कटु आलोएज्जा, (पडिक्कमेजा, शिंदेज्जा, गरिहेज्जा, विउद्देज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुटेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म) पडिवज्जेज्जा, तं जहा (१) मायिस्स णं अस्सिं लोए गरहिते भवति। (२) उववाए गरहिते भवति। (३) आयाती म गरहिता भवति। (४) एगमवि मायी मायं कटु णो आलोएज्जा, (णो पडिक्कमेज्जा, णो णिंदेज्जा, + णो गरिहेज्जा, णो विउद्देज्जा, णो विसोहेज्जा, णो अकरणयाए अन्भुटेज्जा, णो अहारिहं पायच्छित्तं ॐ तवोकम्म) पडिवज्जेज्जा, पत्थि तस्स आराहणा। (५) एगमवि मायी मायं कटु आलोएज्जा, ॥ (पडिक्कमेज्जा, शिंदेज्जा, गरिहेज्जा, विउद्देज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुटेज्जा, अहारिहं । ॐ पायच्छित्तं तवोकम्म) पडिवज्जेज्जा, अत्थि तस्स आराहणा। (६) बहुओवि मायी मायं कटु णो ॥ आलोएज्जा, (णो पडिक्कमेज्जा, णो णिंदेज्जा, णो गरिहेज्जा, णो विउद्देज्जा, णो विसोहेज्जा, णो . ॐ अकरणयाए अब्भुटेज्जा, णो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म) पडिवज्जेज्जा, णत्थि तस्स आराहणा। (७) बहुओवि मायी पायं कटु आलोएज्जा, (पडिक्कमेज्जा, शिंदेज्जा, गरिहेज्जा, विउद्देज्जा, ॐ विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुटेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा), अत्थि तस्स आराहणा। (८) आयरिय-उवज्झायस्स वा मे अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पज्जेज्जा, सेयं, मम ॐ मालोएज्जा मायी णं एसे। १०. (क) आठ कारणों से मायावी माया करके उसकी आलोचना करता है, प्रतिक्रमण करता है, ॐ निन्दा करता है, गर्दा करता है, व्यावृत्ति करता है, विशुद्धि करता है, “मैं पुनः वैसा नहीं करूँगा' ऐसा कहने को उद्यत होता है और (निवृत्ति) यथायोग्य प्रायश्चित्त तथा तपःकर्म स्वीकार करता है। वे आठ कारण इस प्रकार हैं (१) मायावी का यह लोक गर्हित होता है। (लोक निन्दा करते हैं, जिसे सुनकर मन ही मन उद्विग्न रहता है। (२) उपपात गर्हित होता है। (आगामी जन्म में देवगति में भी किल्विषिक आदि देवों में उत्पन्न फ़ होता है। (३) आजाति-तीसरा जन्म गर्हित होता है। देव योनि से च्युत होकर मनुष्य गति में भी तिरस्कृत तथा असम्मानित होता है। (४) जो मायावी एक भी मायाचार करके आलोचना प्रतिक्रमण है, निन्दा, गर्हा, व्यावृत्ति करता और विशुद्धि नहीं करता है, 'पुनः वैसा नहीं करूँगा' ऐसा कहने को उद्यत 卐 भी नहीं होता है, एवं यथायोग्य प्रायश्चित्त और तपःकर्म को स्वीकार भी नहीं करता है, उसके ॥ )) 卐555555;))))))))))))))))))))))))) )) )) ) ) 5)) स्थानांगसूत्र (२) (356) Sthaananga Sutra (2) 555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002906
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages648
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size20 MB
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