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८. जीवा णं अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणिंसु वा उवचिणंति वा उवचिणिस्संति वा एवं चेव । एवं चिण-उवचिण-बंध - उदीर - वेय तह णिज्जरा चेव । एते छ चउवीसा दंडगा भाणियव्वा ।
८. जीवों ने उक्त आठ कर्मप्रकृतियों का संचय, उपचय, बन्ध, उदीरण, वेदन और निर्जरण किया है, कर रहे हैं और करेंगे। इसी प्रकार नारकों से लेकर वैमानिकों तक सभी दण्डकों के जीवों ने आठ कर्मप्रकृतियों का संचय, उपचय, बन्ध, उदीरण, वेदन और निर्जरण किया है, कर रहे हैं और करेंगे। 5 इस प्रकार चौबीस दण्डों में संचय आदि छह पदों का कथन करना चाहिए ।
8. All beings did, do and will augment (upachaya ), bond (bandh), fructify (udiran), experience (vedan) and shed ( nirjaran) the aforesaid eight species of karmas in the past, present and future respectively. In the same way all beings of all Dandaks up to Vaimaniks did, do and will augment (upachaya ), bond (bandh), fructify (udiran), experience ( vedan) and shed (nirjaran) the aforesaid eight species of karmas in the past, present and future respectively. In the same way these six statements about acquiring (etc.) should be read for all the twenty four Dandaks (places of suffering).
आलोचना - पद ALOCHANA-PAD (SEGMENT OF CRITICISM)
९. अट्ठहिं ठाणेंहि मायी मायं कट्टु णो आलोएज्जा, णो पडिक्कमेज्जा, (णो णिंदेज्जा, णो गरिहेज्जा, णो विउट्टेज्जा, णो विसोहेज्जा, णो अकरणयाए अब्भुट्टेज्जा, णो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं ) पडिवज्जेज्जा, तं जहा - करिंसु वाहं, करेमि वाहं, करिस्सामि वाहं, अकित्ती वा मे सिया, अवणे वा मे सिया, अविणए वा मे सिया, कित्ती वा मे परिहाइस्सइ, जसे वा मे परिहाइस्सइ ।
९. मायावी व्यक्ति माया करके आठ कारणों से उसकी आलोचना, प्रतिक्रमण, निन्दा गर्हा, व्यावृत्ति ( निवृत्ति) और विशुद्धि नहीं करता है। "पुनः वैसा नहीं करूँगा”, ऐसा कहने को उद्यत भी नहीं होता है तथा न यथायोग्य प्रायश्चित्त और तपःकर्म को स्वीकार करता है। वे आठ कारण इस प्रकार हैं- ( 9 ) मैंने (भूतकाल में) अकरणीय कार्य किया है, (२) मैं (वर्तमान में) अकरणीय कार्य कर रहा हूँ, (३) मैं (भविष्य में) अकरणीय कार्य करूँगा, (फिर इनकी आलोचना निन्दा क्यों करूँ ?) (४) (आलोचना करने से) मेरी अपकीर्ति होगी, (५) मेरा अवर्णवाद ( अपयश ) होगा, (६) मेरा अविनय (प्रतिष्ठा को हानि पहुँचेगी) होगा, (७) मेरी (अब तक संचित ) - कीर्ति - (भौतिक वैभव से बढ़ी प्रतिष्ठा कम हो जायेगी, (८) मेरा यश - (सद्गुणों से बढ़ी प्रतिष्ठा) कम हो जायेगा ।
9. For eight reasons a treacherous person, even after committing treachery, does not criticize (alochana) the act, do critical review (pratikraman), reprove (ninda) (before self), reproach ( garha) (before the guru), refrain from doing the act (vyavritti), purge himself (vishuddhi), resolve not to repeat, or accept suitable atonement and penance. Those
अष्टम स्थान
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Eighth Sthaan
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