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ॐ वही जीव अण्डज योनि को छोड़कर दूसरी योनि में जाता है, वह अण्डज, पोतज, जरायुज, रसज, म संस्वेदज, सम्मूर्छिम या उद्भिज्ज रूप से जाता है। अर्थात् सातों योनियों में उत्पन्न हो सकता है।
५. पोतज जीवों की सात गति और सात आगति होती हैं। इसी प्रकार सातों ही योनि वाले जीवों + की सातों ही गति-आगति होती हैं। 5 4. Andaj jiva (egg-born beings) have seven kinds of gatis (reincarnation 4 to) and seven aagatis (reincarnation from)-A being taking birth as Andaj i being reincarnates from either Andaj beings, Potaj beings, Jarayuj
beings, Rasaj beings, Samsvedaj beings, Sammoorchanaj beings or
Udbhij beings. 1 The same Andaj being leaving the state of Andaj being reincarnates
in the genus of either Andaj beings, Potaj beings, Jarayuj beings, Rasaj beings, Samsvedaj beings, Sammoorchanaj beings or Udbhij beings. In other words it can reincarnate in any of the said seven genuses.
5. Potaj beings also have seven gatis and aagatis. In the same way all the said seven kinds of beings have seven kinds of gatis (reincarnation to) and seven aagatis (reincarnation from).
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संग्रहस्थान-पद SANGRAHASTHAAN-PAD
___(SEGMENT OF PROPER MANAGEMENT) ६. आयरिय-उवज्झायस्स णं गणंसि सत्त संगहठाणा पण्णत्ता, तं जहा
(१) आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि आणं वा धारणं वा सम्म पउंजित्ता भवति। म (२) [ आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि आहाराइणियाए कितिकम्मं सम्मं पउंजित्ता भवति।
(३) आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि जे सुत्तपज्जवजाते धारेति ते काले-काले सम्ममणुप्पवाइत्ता के म भवति। (४) आयरिय-उवज्झाए गं गणंसि गिलाणसेहवेयावच्चं सम्ममभुट्टित्ता भवति । 4 (५) आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि आपुच्छियचारी यावि भवति, णो अणापुच्छियचारी। म (६) आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि अणुप्पण्णाई उवगरणाई सम्मं उप्पाइत्ता भवति।
(७) आयरिय-उवज्झाए णं गणंसि पुव्वुप्पणाई उवकरणाई सम्मं सारक्खेत्ता संगोवित्ता भवति, णो म असम्मं सारक्खेत्ता संगोवित्ता भवति।
६. आचार्य और उपाध्याय के लिए गण में सात संग्रहस्थान (गण को सुव्यवस्थित रखने का उपाय) हैं
(१) आचार्य और उपाध्याय गण में आज्ञा (आदेश) एवं धारणा (निषेध) का सम्यक् प्रयोग करें। (२) आचार्य और उपाध्याय गण में यथारानिक (दीक्षा-पर्याय में छोटे-बड़े के क्रम से) कृतिकर्म क (वन्दनादि) का सम्यक् प्रयोग करें। (३) आचार्य और उपाध्याय जिन-जिन सूत्र-पर्यवजातों को धारण
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स्थानांगसूत्र (२)
(282)
Sthaananga Sutra (2)
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