________________
BFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFF55555听听听听听听听听听听听听听听四
45455455555555555555555555555555555558
he only knows limited things in a limited area but this universe is 4 unlimited and is filled with unlimited things.
But the ascetics who are unrighteous get singularly dogmatic as 4 mentioned above.
योनिसंग्रह-सूत्र YONI-SANGRAHA-PAD (SEGMENT OF PLACE OF ORIGIN) ॐ ३. सत्तविधे जोणिसंगहे पण्णत्ते, तं जहा-अंडजा, पोतजा, जराउजा, रसजा, संसेयजा, समुच्छिमा, उभिगा।
३. योनि-संग्रह (जीवों के उत्पत्तिस्थान) सात प्रकार के हैं-(१) अण्डज-अण्डों से उत्पन्न होने वाले ॐ पक्षी सर्प आदि। (२) पोतज-चर्म-आवरण बिना उत्पन्न होने वाले हाथी, शेर आदि। (३) जरायुज+ चर्म-आवरण रूप जरायु (जेर) से उत्पन्न होने वाले मनुष्य, गाय आदि। (४) रसज-दूध-दही, तेल
आदि रसों में उत्पन्न होने वाले जीव। (५) संस्वेदज-संस्वेद (पसीना) से उत्पन्न होने वाले लूँ, लीख आदि। ॐ (६) सम्मूर्छिम-परमाणुओं के संयोग से उत्पन्न होने वाले लट आदि। (७) उद्भिज्ज-भूमि को भेद कर म उत्पन्न होने वाले खंजनक आदि जीव।। 5 3. Yoni sangraha (places of origin) are of seven kinds--(1) Andaj or
born from an egg, as are birds, reptiles, etc. (2) Potaj or born as fully formed infants, as are elephants and tigers. (3) Jarayuj or placental,
such as man, cow etc. (4) Rasaj or born out of liquids including milk, $ curd, oil etc. (5) Samsvedaj or born out of sweat, such as louse, nit, etc.
(6) Sammoorchanaj or produced from asexual origin, such as worms. (7) Udbhij or those that burst out of the earth when born, such as khanjanak. गति-आगति-पद GATI-AAGATI-PAD (SEGMENT OF BIRTH FROM AND TO)
४. अंडगा सत्तगतिया सत्तागतिया पण्णत्ता, तं जहा-अंडगे अंडगेसु उववज्जमाणे अंडगेहितो जवा, पोतजेहिंतो वा, [जराउजेहिंतो वा, रसजेहिंतो वा, संसेयगेहिंतो वा, संमुच्छिमेहिंतो वा], 卐 उभिगेहिंतो वा, उववज्जेज्जा।
सच्चेव णं से अंडए अंडगत्तं विप्पजहमाणे अंडगत्ताए वा, पोतगत्ताए वा, [जराउजत्ताए वा, रसजत्ताए वा, संसयेगत्ताए वा, संमुच्छिमत्ताए वा ], उब्भिगत्ताए वा गच्छेज्जा।
५. पोतगा सत्तगतिया सत्तागतिया एवं चेव। सत्तण्हवि गतिरागती भाणियव्वा जाव उभियत्ति। ॐ ४. अण्डज जीवों की सात गति और सात आगति होती हैं जो जीव अण्डज योनि में उत्पन्न होता है है, वह अण्डजों से या पोतजों से या जरायुजों से या रसजों से या संस्वेदजों से या सम्मूर्छिमों से या
उद्भिज्जों से आकर उत्पन्न होता है।
F555555555555555FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFB
| सप्तम स्थान
(281)
Seventh Sthaan
35555555555555555555555)))))))))
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org