________________
9595555558
555555555555555555555555558
# हरिकान्त, अग्निशिख, पूर्ण, जलकान्त, अमितगति, बेलम्ब और घोष इन सभी दक्षिणेन्द्रों की छह-छह + अग्रमहिषियाँ हैं। ५८. जिस प्रकार भूतानन्द की छह अग्रमहिषियाँ हैं, उसी प्रकार हरिस्सह, , __ अग्निमानव, विशिष्ट, जलप्रभ, अमितवाहन, प्रभंजन और महाघोष, इन सभी उत्तरेन्द्रों की छह-छह अग्रमहिषियाँ हैं।
55. Dharan Naagkumarendra, the king of Naag Kumar gods in the __south, has six agramahishis (chief queens)—(1) Ala (Aala), (2) Shakra,
(3) - Shatera, (4) Saudamini, (5) Indra and (6) Ghanavidyut. 卐 56. Bhootanand Naagkumarendra, the king of Naag Kumar gods in the
north, has six agramahishis (chief queens)-(1) Rupa, (2) Rupamsha, (3) Surupa, (4) Rupavati, (5) Rupakanta and (6) Rupaprabha. 57. Like the agramahishis of Dharan, all Dakshinendras (the overlords of south)-Venudev, Harikant, Agnishikh, Purna, Jalakant, Amit-gati, Velamb and Ghosh have six agramahishis each. 58. Like the ॥ agramahishis of Bhootanand, all Uttarendras (the overlords of northHarissaha, Agnimanav, Vishisht, Jalaprabh, Amit-vahan, Prabhanjan and Mahaghosh have six agramahishis each. सामानिक-पद SAMANIK-PAD (SEGMENT OF GODS OF EQUAL STATUS)
५९. धरणस्त णं णागकुमारिंदस्स णागकुमाररण्णो छस्सामाणियसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। ६०. एवं भूताणंदस्सवि जाव महाघोसस्स।
५९. नागकुमारराज नागकुमारेन्द्र धरण के छह हजार सामानिक देव हैं। ६०. इसी प्रकार नागकुमारराज नागकुमारेन्द्र भूतानन्द, वेणुदालि, हरिस्सह, अग्निमानव, विशिष्ट, जलप्रभ, अमितवाहन, प्रभंजन और महाघोष के भी भूतानन्द के समान छह-छह हजार सामानिक देव हैं।
59. Dharan Naagkumarendra, the king of Naag Kumar gods, has six thousand Samanik gods (gods of equal status). 60. In the same way 4 Bhootanand, Venudali, Harissaha, Agnimanav, Vishisht, Jalaprabh, Amit-vahan, Prabhanjan and Mahaghosh Naagkumarendras too have six thousand Samanik gods each. मति-पद (अवग्रहादि के २४ विकल्प) MATI-PAD (SEGMENT OF INTELLECTUAL FACULTY)
६१. छब्बिहा ओग्गहमती पण्णत्ता, तं जहा-खिप्पमोगिण्हति, बहुमोगिण्हति, बहुविधमोगिण्हति, मोगिण्हति, धुवमोगिण्हति, अणिस्सियमोगिण्हति, असंदिद्धमोगिण्हति।
६१. अवग्रहमति (सामान्य अर्थग्रहण करने वाली) के छह प्रकार हैं-(१) क्षिप्र-अवग्रहमति-शीघ्र ग्रहण करना। (२) बहु-अवग्रहमति-अनेक पदार्थों को एक-एक करके बहुत ग्रहण करना। ॐ (३) बहुविध-अवग्रहमति-बहुत प्रकार के पदार्थों के अनेक पर्यायों को ग्रहण करना। (व्यवहारभाष्य के ज
5
स्थानांगसूत्र (२)
(246)
Sthaananga Sutra (2)
895955555555555555555555555555558
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
ॐ