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विवेचन-आचार्य और उपाध्याय गण के प्रधान होते हैं। संघ या गण का सम्यक् प्रकार से संचालन के क करना उनका कर्त्तव्य है। किन्तु जब वे यह अनुभव करते हैं कि गण में मेरी आज्ञा या धारणा की + अवहेलना हो रही है, तो वे गण छोड़कर चले जाते हैं। म दूसरा कारण वन्दन और विनय का सम्यक् प्रयोग न कर सकना है। यद्यपि आचार्य और उपाध्याय
का गण में सर्वोपरि स्थान है, तथापि प्रतिक्रमण और क्षमा-याचना के समय दीक्षा-पर्याय में ज्येष्ठ और श्रुत के विशिष्ट ज्ञाता साधुओं का विशेष सम्मान करना चाहिए। यदि वे अपने पद के अभिमान से वैसा नहीं करते हैं, तो गण में असन्तोष या विग्रह खड़ा हो जाता है, ऐसी दशा में वे गण छोड़कर चले जाते हैं।
तीसरा कारण गणस्थ साधुओं को, स्वयं जानते हुए भी यथासमय सूत्र या अर्थ या उभय की वाचना न देना है। इससे गण में क्षोभ उत्पन्न हो जाता है और आचार्य या उपाध्याय पर पक्षपात का दोषारोपण होने लगता है। ऐसी दशा में उन्हें गण से चले जाने का विधान किया गया है।
चौथा कारण संघ की निन्दा होने या प्रतिष्ठा गिरने का है, अतः उनका स्वयं ही गण से बाहर चले म जाना उचित माना गया है।
____ पाँचवाँ कारण मित्र या ज्ञातिजन के गण से चले जाने पर पुनः संयम में स्थिर करने या गण में । वापिस लाने के लिए गण से बाहर जाने का विधान किया गया है। ___सबका सारांश यही है कि जैसा करने से गण या संघ की प्रतिष्ठा, मर्यादा और प्रख्याति बनी रहे
और अप्रतिष्ठा, अमर्यादा और अपकीर्ति का अवसर न आवे, वही कार्य करना आचार्य और उपाध्याय का कर्तव्य है। (विस्तार से वर्णन देखें हिन्दी टीका भाग-२ पृष्ठ १७० तथा ७१, ठाणं पृष्ठ ६४१) ___Elaboration Acharya and upadhyaya are heads of the gana (group). 6. It is their duty to direct and manage the organization properly. But when
they feel that their orders or instructions are not being followed they are supposed to leave the group and go away. The second reason is inability to follow the codes of protocol. Although
or upadhyaya command the highest status in the group they should offer due respect to the seniors in initiation as well as accomplished i scholars of scriptures, specially at the time of pratikraman (critical review) 5 and kshama yachana (begging pardon). If they fail to do so due to the ego of their status there are chances of dissatisfaction and revolt in the group. Under such conditions they are supposed to leave the group.
The third reason is not to teach or give timely recitation (vaachana) of text and meaning of scriptures to all disciples in spite of knowing the same. This breeds dissatisfaction and they are blamed of favouritism. Under such conditions they are supposed to leave the group. i The fourth reason leads to criticism of the sangh or tarnishing its
prestige. Therefore, it is better that the involved acharya or upadhyaya himself leaves the group. | पंचम स्थान : द्वितीय उद्देशक
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Fifth Sthaan : Second Lesson
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