________________
2 95 95 95 5 5 5559595959 55 595 5 55955 59595955 5955959595559 5 5 5 5 5 5552
****த***************தமிழ***தமிமிதிமிதிமிதி
फ्र
one or two nights. (5) Acharya and upadhyaya do not defy the word of 5 Bhagavan if they live alone out side the upashraya for one or two nights. विवेचन-इन पाँच अतिशेषों के सम्बन्ध में विस्तृत वर्णन व्यवहारभाष्य उद्देशक ६ गाथा १२३-२२७ प्राप्त है। हिन्दी टीका भाग २ पृष्ठ १६६, तथा ठाणं पृष्ठ ६३८ पर भी विस्तार के साथ वर्णन है । Elaboration-Detailed description about these five privileges is available in Vyavahar Bhashya 6/123-227 and also in Hindi Tika, part - 2. 5 p 166 as well as Thanam, p. 638.
卐
5
5
फ्र
आचार्य - उपाध्याय - गणापक्रमण - पद ACHARYA UPADHYAYA GANAPAKRAMAN PAD (SEGMENT OF ACHARYA AND UPADHYAYA LEAVING THE GROUP) १६७. पंचहिं ठाणेहिं आयरिय - उवज्झायस्स गणावक्कमणे पण्णत्ते, तं जहा
卐
(१) यदि आचार्य या उपाध्याय गण में आज्ञा या धारणा का सम्यक् प्रयोग न कर सके । (२) यदि
फ्र
फ आचार्य और उपाध्याय गण में यथारालिक कृतिकर्म ( बड़ों का वन्दन और विनयादिक) का सम्यक् प्रयोग
卐
( १ ) आयरिय - उवज्झाए गणंसि आणं वा धारणं वा णो सम्मं परंजित्ता भवति । (२) आयरिय - उवज्झाए गणंसि आधारायणियाए कितिकम्मं वेणइयं णो सम्मं परंजित्ता भवति । (३) आयरिय - उवज्झाए गणंसि जे सुयपज्जवजाते धारेति, ते काले-काले णो सम्ममणुपवादेत्ता भवति । ( ४ ) आयरिय - उवज्झाए गणंसि सगणियाए वा परगणियाए वा णिग्गंथोए बहिल्लेसे भवति ।
(५) मित्ते णातिगणे वा से गणाओ अवक्कमेज्जा, तेसिं संगहोवग्गहट्ठायए गणावक्कमणे पण्णत्ते ।
१६७. पाँच कारणों से आचार्य और उपाध्याय गणापक्रमण - गण से बाहर निर्गमन करते हैं।
5 न कर सके। (३) यदि आचार्य और उपाध्याय जिन श्रुत-पर्यायों को धारण करते हैं, समय-समय पर
उनकी गण को सम्यक् वाचना न दे सके। (४) यदि आचार्य या उपाध्याय अपने गण की, या पर- गण की
卐
167. For five reasons acharya and upadhyaya leave their group 5 (ganapakraman) -
卐
निर्ग्रन्थी में बहिर्लेश्य (आसक्त) हो जावें। (५) आचार्य या उपाध्याय के मित्र ज्ञातिजन (कुटुम्बी आदि) गण 5 से चले जायें तो उन्हें पुनः गण में संग्रह करने या उपग्रह करने के लिए गण से अपक्रमण कर सकते हैं।
5
फ्र
(1) If an acharya or upadhyaya fails to properly assert his command
(ajna and dharana ). ( 2 ) If an acharya or upadhyaya fails to properly follow yatharatnik kritikarma (codes of protocol and conduct). (3) If an acharya or upadhyaya fails to properly recite and teach the sutra paryavajat (meaning and interpretations of sutras) he has mastered. (4) If an acharya or upadhyaya gets infatuated with a female ascetic of his own or other group. (5) If the friends and relatives of an acharya or 卐 upadhyaya leave his group, then for the purpose of bringing them back to the fold.
卐
स्थानांगसूत्र (२)
(176)
Jain Education International
5555தமிழ்தமிழ்தமிழதமிதிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிததததிமிதிமிதிததி
卐
फ्र
卐
卐
Sthaananga Sutra ( 2 )
For Private & Personal Use Only
5
www.jainelibrary.org