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१४४. सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों का घात नहीं करने वाले को पाँच प्रकार का संयम होता . म है-(१) एकेन्द्रिय-संयम, [(२) द्वीन्द्रिय-संयम, (३) त्रीन्द्रिय-संयम, (४) चतुरिन्द्रिय-संयम], 5 * (५) पंचेन्द्रिय-संयम।
144. A being not indulging in harming or killing of all pran, bhoot, jiva and sattva has five kinds of discipline--(1) ekendriya samyam (discipline
relating to one-sensed living being), (2) dvindriya samyam, (3) trindriya 4 samyam, (4) chaturindriya samyam and (5) panchendriya samyam.
१४५. सब पाणभूयजीवसत्ताणं समारभमाणस्स पंचविहे असंजमे कज्जति, तं जहाॐ एगिंदियअसंजमे, [ बेइंदियअसंजमे, तेइंदियअसंजमे, चउरिदियअसंजमे ], पंचिंदियअसंजमे।
१४५. सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों का घात करने वाले को पाँच प्रकार का असंयम होता है+ (१) एकेन्द्रिय-असंयम, (२) [द्वीन्द्रिय-असंयम, (३) त्रीन्द्रिय-असंयम, (४) चतुरिन्द्रिय-असंयम], 5 (५) पंचेन्द्रिय-असंयम।
145. A being indulging in harming or killing of all pran, bhoot, jiva and sattva (two to four-sensed beings, plant-bodied beings, five-sensed living beings) and (earth-bodied, water-bodied, fire-bodied and air-bodied
living beings) has five kinds of indiscipline-(1) ekendriya asamyam, ॐ (2) dvindriya asamyam, (3) trindriya asamyam, (4) chaturindriya
asamyam and (5) panchendriya asamyam. ॐ विवेचन-वृत्तिकार के अनुसार द्वीन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय जीव को 'प्राण' वनस्पतिकाय को 'भूत' ॐ पंचेन्द्रिय को 'सत्त्व' और शेष पृथ्वी आदि चार स्थावरकाय को 'सत्त्व' कहते हैं।
Elaboration According to the commentator (Vritti) two to four sensed ॐ beings are classified as pran, plant-bodied beings as bhoot, five sensed
beings as jiva, and the remaining four immobile-bodied beings including earth-bodied are called sattva. तृणवनस्पति-पद TRINAVANASPATI-PAD (SEGMENT OF GRAMINEOUS PLANTS)
१४६. पंचविहा तणवणस्सतिकाइया पण्णत्ता, तं जहा-अग्गबीया, मूलबीया, पोरबीया, खंधबीया, बीयरुहा। म १४६. तृणवनस्पतिकायिक जीव पाँच प्रकार के हैं-(१) अग्रबीज-जिनका अग्रभाग ही बीजरूप
होता है। जैसे-कोरंट वृक्ष आदि। (२) मूलबीज-जिनका मूल भाग ही बीज रूप होता है। जैसे-कमलकंद ॐ आदि। (३) पर्वबीज-जिनका पर्व (पोर, गाँठ) ही बीजरूप होता है। जैसे-गन्ना आदि। (४) स्कन्धबीज
जिसका स्कन्ध ही बीजरूप होता है। जैसे-सल्लकी (वट या चीढ़ का वृक्ष) आदि। (५) बीजरूह-बीज से उगने वाले-गेहूँ, चना आदि।
स्थानांगसूत्र (२)
(166)
Sthaananga Sutra (2)
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