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45 (2) chakshurindriya pratisamlin-in good and bad appearance, 4
(3) ghranendriya pratisamlin-in good and bad smell, (4) rasanendriya pratisamlin-in good and bad taste and (5) sparshendriya pratisamlinin good and bad touch.
१३६. पंच अपडिसंलीणा पण्णत्ता, तं जहा-सोतिंदियअपडिसंलीणे, [ चक्खिंदियअपडिसंलीणे, घाणिंदियअपडिसंलीणे, जिभिंदियअपडिसंलीणे ], फासिंदियअपडिसंलीणे।
१३६. अप्रतिसंलीन-(इन्द्रिय-विषय-सेवन में संलग्न तथा उनमें राग-द्वेष करने वाला) पाँच प्रकार का है-(१) श्रोत्रेन्द्रिय-जप्रतिसंलीन, (२) चक्षुरिन्द्रिय-अप्रतिसंलीन, (३) घ्राणेन्द्रियअप्रतिसंलीन, (४) रसनेन्द्रिय-अप्रतिसंलीन और (५) स्पर्शनेन्द्रिय-अप्रतिसंलीन।
136. Apratisamlin (one who indulges in subjects of five sense organs) fi is of five kinds-(one who is not free of attachment and aversion) fi (1) shrotendriya apratisamlin, (2) chakshurindriya apratisamlin,
(3) ghranendriya apratisamlin, (4) rasanendriya apratisamlin and (5) sparshendriya apratise संवर-असंवर पद SAMVAR-ASAMVAR-PAD
१३७. पंचविधे संवरे पण्णत्ते, तं जहा-सोतिंदियसंवरे, [चक्खिंदियसंवरे, घाणिंदियसंवरे, जिभिंदियसंवरे ], फासिंदियसंवरे। १३८.-पंचविधे असंवरे पण्णत्ते, तं जहा-सोतिंदियअसंवरे, [चक्खिंदियअसंवरे, घाणिंदियअसंवरे, जिभिंदियअसंवरे ], फासिंदियअसंवरे।
१३७. संवर पाँच प्रकार का है-(१) श्रोत्रेन्द्रिय-संवर, (२) चक्षुरिन्द्रिय-संवर, ॐ । (३) घ्राणेन्द्रिय-संवर, (४) रसनेन्द्रिय-संवर, (५) स्पर्शनेन्द्रिय-संवर। १३८. असंवर (आस्रव) पाँच ॥
प्रकार का है-(१) श्रोत्रेन्द्रिय-असंवर, (२) चक्षुरिन्द्रिय-असंवर, (३) घ्राणेन्द्रिय-असंवर, (४) रसनेन्द्रिय-असंवर, (५) स्पर्शनेन्द्रिय असंवर। ___137. Samvar (blockage of inflow of karmas or abstaining from
indulgence in subjects of sense organs) is of five kinds—(1) shrotendriya Esamvar, (2) chakshurindriya samvar, (3) ghranendriya samvar,
(4) rasanendriya samvar and (5) sparshendriya samvar. 138. Asamvar 5 (inflow of karmas or indulgence in subjects of sense organs) is of five
kinds-(1) shrotendriya asamvar, (2) chakshurindriya asamvar, (3) ghranendriya asamvar, (4) rasanendriya asamvar and (5) sparshendriya asamvar.
विवेचन-प्रतिसंलीन और 'संवर' शब्द में अर्थ भेद है। बाह्य विषयों से इन्द्रियों को हटाना प्रतिसंलीनता है तथा आत्म-स्वरूप में रमण करना, संवर है। बाह्य विषयों से सम्बन्ध तोड़ना प्रतिसंलीनता तथा अन्तर स्वरूप से सम्बन्ध जोड़ना संवर है।
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पंचम स्थान : द्वितीय उद्देशक
(163)
Fifth Sthaan : Second Lesson 1955555555555555555555555555555555558
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