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________________ 055555555555555555555555558 parijna-to stop bad mental, vocal and physical association and indulge in good ones. (5) Bhaktapaan parijna-to eat faultless and pure food necessary for observing ascetic conduct. (Hindi Tika, part-2, p. 128) 卐5555)))))))))))))))5555555555555555555555555558 व्यवहार-पद YAVAHAR-PAD (SEGMENT OF BEHAVIOUR) १२४. पंचविहे ववहारे पण्णत्ते, तं जहा-आगमे, सुते, आणा, धारणा, जीते। (१) जहा से तत्थ आगमे सिया, आगमेणं ववहारं पट्ठवेज्जा। (२) णो से तत्थ आगमे सिया जहा से तत्थ सुते सिया, सुतेणं ववहारं पट्ठवेज्जा। (३) णो से तत्थ सुते सिया (जहा से तत्थ आणा सिया, आणाए ववहारं पट्ठवेजा। (४) णो से तत्थ आणा सिया जहा से तत्थ धारणा सिया, धारणाए ववहारं पट्टवेज्जा। (५) णो से तत्थ धारणा सिया जहा से तत्थ जीते सिया, जीतेणं ववहारं पट्टवेज्जा। इच्चेतेहिं पंचहिं ववहारं पट्टवेज्जा-आगमेणं (सुतेणं आणाए धारणाए) जीतेणं। जहा-जहा से तत्थ आगमे (सुते आणा धारणा) जीते तहा-तहा ववहारं पट्टवेज्जा। से किमाहु भंते ! आगमबलिया समणा णिगंथा। इच्चेतं पंचविधं ववहारं जया-जया जहिं-जहिं तया-तया तहि-तहिं अणिस्सितोवस्सितं सम्म म ववहरमाणे समणे णिग्गंथे आणाए आराहए भवति। १२४. व्यवहार पाँच प्रकार का है-(१) आगमव्यवहार, (२) श्रुतव्यवहार, (३) आज्ञाव्यवहार, ॐ (४) धारणाव्यवहार, (५) जीतव्यवहार। (१) जहाँ आगम हो अर्थात् जहाँ आगम से विधि-निषेध का बोध होता हो वहाँ आगम से व्यवहार करें। (२) जहाँ आगम न हो, श्रुत हो, वहाँ श्रुत से व्यवहार करें। (३) जहाँ श्रुत न हो, आज्ञा हो, वहाँ आज्ञा से व्यवहार करें। (४) जहाँ आज्ञा न हो, धारणा हो, वहाँ धारणा से व्यवहार करें। (५) जहाँ म धारणा न हो, जीत हो, वहाँ जीत से व्यवहार करें। ॐ इन पाँचों से व्यवहार करे-(१) आगम से, (२) श्रुत से, (३) आज्ञा से, (४) धारणा से, (५) जीत है + से। जिस समय जहाँ आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीत में से जो प्रधान हो, वहाँ उसी से व्यवहार करना चाहिए। ___ प्रश्न-भगवन् ! जिनका आगम ही बल है ऐसे श्रमण-निर्ग्रन्थों ने इस विषय में क्या कहा है ? उत्तर-आयुष्मान् श्रमणो ! इन पांचों व्यवहारों में जब-जब जिस-जिस विषय में जो व्यवहार हो, तब-तब वहाँ-वहाँ उसका अनिश्रितोपाश्रित-मध्यस्थ भाव से, सम्यक् व्यवहार करता हुआ श्रमण ॐ निर्ग्रन्थ भगवान् की आज्ञा का आराधक होता है। E55555听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 स्थानांगसूत्र (२) (156) Sthaananga Sutra (2) | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002906
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages648
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size20 MB
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