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124. Vyavahar (behaviour or conduct) is of five kinds-(1) Agam vyavahar, (2) Shrut vyavahar, (3) Ajna vyavahar, (4) Dharana vyavahar and (5) Jeet vyavahar. __ (1) In case Agam exists (and dictates of Agam are available) follow Agam-conduct. (2) In case Shrut (scriptures) and not Agam exists follow Shrut-conduct. (3) Where Ajna (command of the learned) and not Shrut exists follow Ajna-conduct. (4) Where Dharana (general belief of the seniors) and not Ajna exists follow Dharana-conduct. (5) Where Jeet (common practice of the seniors) and not Dharana exists follow Jeetconduct.
Behave according to these five—(1) Agam, (2) Shrut, (3) Ajna, (4) Dharana and (5) Jeet. In a particular situation whichever out of Agam, Shrut, Ajna, Dharana and Jeet is important base your conduct accordingly.
(Question) Bhante ! What the shraman nirgranths whose strength lies in Agam alone have said about this?
(Answer) “Long lived Shramans ! Out of these five types of conduct 4 when a specific code is stated then that should be rightly followed with equanimity. Such shraman nirgranth is the true follower of Bhagavan's order.
विवेचन-मुमुक्षु व्यक्ति को क्या करना चाहिए। इस प्रकार के प्रवृत्ति-निवृत्ति रूप निर्देश को : 'व्यवहार' कहते हैं। जिनसे यह व्यवहार चलता है वे व्यक्ति भी कार्य-कारण की अभेद दृष्टि से व्यवहार कहे जाते हैं। पाँचों व्यवहारों का अर्थ इस प्रकार है
(१) आगमव्यवहार-केवलज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, चतुर्दशपूर्वी, दशपूर्वी और नवपूर्वो के धारक 'आगम पुरुष' कहे जाते हैं, उनका आदेश ‘आगम व्यवहार' है।
(२) श्रुतव्यवहार-नवपूर्व से न्यून ज्ञान वाले आचार्यों का व्यवहार श्रुतव्यवहार हैं। कम से कम बृहत्कल्प और व्यवहार के ज्ञाता 'श्रुत व्यवहारी' होते हैं।
(३) आज्ञाव्यवहार-किसी साधु ने किसी दोष-विशेष की प्रतिसेवना की है; अथवा भक्तपान का त्याग कर दिया है और समाधिमरण को धारण कर लिया है, वह अपने जीवनभर की आलोचना करना , चाहता है। गीतार्थ साधु या आचार्य समीप प्रदेश में नहीं हैं, दूर हैं और उनका आना भी सम्भव नहीं है। ऐसी दशा में उस साध के दोषों को गढ़ या संकेत पदों के द्वारा किसी अन्य साधु के साथ उन दूरवती ॥ आचार्य या गीतार्थ साधु के समीप भेजा जाता है, तब वे उसके प्रायश्चित्त को गूढ़ पदों के द्वारा ही उसके साथ भेजते हैं। इस प्रकार गीतार्थ की आज्ञा से जो शुद्धि की जाती है, उसे आज्ञाव्यवहार कहते हैं। संक्षेप में गीतार्थ आचार्य की आज्ञा ही व्यवहार है।
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पंचम स्थान : द्वितीय उद्देशक
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Fifth Sthaan : Second Lesson
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