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दिन का। (२) मध्यम वर्षावास-श्रावणकृष्णा प्रतिपदा से कार्तिकी पूर्णमासी तक चार मास या १२० दिन ॥ का। (३) उत्कृष्ट वर्षावास-आषाढ़ से लेकर मगसिर तक छह मास का।
. प्रथम सूत्र के द्वारा प्रथम प्रावृष में विहार का निषेध किया गया है और दूसरे सूत्र के द्वारा ॥ वर्षावास में विहार का निषेध किया गया है। इससे यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि पर्युषणकल्प को स्वीकार के करने के पूर्व जो वर्षा का समय है उसे 'प्रथम प्रावृष्' कहा जाता है। अतः प्रथम प्रावृट् का अर्थ है - आषाढ़ मास में विहार न किया जाये। प्रावृट् का अर्थ वर्षाकाल लेने पर अर्थ होगा-भाद्रपद शुक्ला पंचमी से कार्तिकी पूर्णिमा तक का समय। इस समय में विहार का निषेध किया गया है। चातुर्मास में : विहार करने का निषेध दो सूत्रों द्वारा कहने का अभिप्राय यह लगता है कि तीन ऋतुओं की गणना में 'वर्षा' एक ऋतु है। किन्तु छह ऋतुओं की गणना करने से उसके दो भेद हो जाते हैं, जिसके अनुसार + श्रावण और भाद्रपद ये दो मास प्रावृष ऋतु में तथा आश्विन और कार्तिक ये दो मास 'वर्षा ऋतु' में गिने जाते हैं। इस प्रकार दोनों सूत्रों का सम्मिलित अर्थ है कि श्रावण से लेकर कार्तिक मास तक चार मासों में साधु और साध्वियों को विहार नहीं करना चाहिए। यह उत्सर्ग मार्ग है। हाँ, सूत्रोक्त पाँच कारण-विशेषों की अवस्था में विहार किया भी जा सकता है, यह अपवाद मार्ग है।
छह मास के उत्कृष्ट वर्षावास का अभिप्राय यह है कि यदि आषाढ़ के प्रारम्भ से ही पानी बरसने लगे और मगसिर मास तक भी बरसता रहे तो छह मास का उत्कृष्ट वर्षावास होता है। इस काल में श्रमण एक स्थान पर रहता है।
ElaborationTo stay at a place during the monsoon season is called varshavas or monsoon-stay. This is of three kinds—minimum, medium and maximum. (1) Jaghanya varshavas (minimum monsoon-stay)- It is
of 70 days from Samvatsarik pratikraman to Kartik Purnima. 41 । (2) Madhyam varshavas (medium monsoon-stay)-It is of 120 days from ! Shravan Krishna Pratipada to Kartik Purnima. (3) Utkrisht varshavas (maximum monsoon-stay)—It is of 6 months from Ashadh to Mangsir.
The first of these two aphorism proscibes movement during pratham pravrit (first part of monsoon season) and the second during monsoonstay. This confirms that pratham pravrit is the part of monsoon season before Paryushan kalp is accepted. This means that there should be no movement during the month of Ashadh. If Pravrit is interpreted just as monsoon season it would include the period between Bhadrapad Shukla panchami to Kartik Purnima. Movement is, indeed, prohibited during : this period. Splitting this negation into two parts appears to have the purpose of including both popular ways of counting seasons. In the counting based on three seasons in a year monsoon is one long season but in the counting based on six seasons in a year monsoon season is split into two-Shravan-Bhadrapad are called Pravrit Ritu and Ashvin
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पंचम स्थान : द्वितीय उद्देशक
(141)
Fifth Sthaan : Second Lesson
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