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९९. निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को प्रथम प्रावृट् में ग्रामानुग्राम विहार करना नहीं कल्पता है । किन्तु पाँच कारण उपस्थित होने पर विहार करना कल्पता है। जैसे- (१) शरीर, उपकरण आदि के अपहरण का भय होने पर, (२) दुर्भिक्ष होने पर, (३) किसी के द्वारा व्यथित किये जाने पर या ग्राम से निकाल दिये जाने पर, (४) बाढ़ आ जाने पर, (५) अनार्यों के द्वारा उपद्रव किये जाने पर ।
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99. Nirgranth and nirgranthis (male and female ascetics) are not allowed to move from one village to another during pratham pravrit (first part of the monsoon season). However, they are allowed to do so for five reasons-(1) If there is a fear of being deprived of body and equipment. (2) If there is a famine. (3) On being tormented or expelled out of the village. ( 4 ) If there is a flood. (5) If disturbance is created by anarya (ignoble) people.
वर्षावास - विहार पद VARSHAVAS-VIHAR-PAD
(SEGMENT OF MOVEMENT DURING MONSOON-STAY)
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१००. वासावासं पज्जोसविताणं णो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा गामाणुगामं 5 दूइज्जत्तए | पंचर्हि ठाणेहिं कप्पर, तं जहा - ( १ ) णाणट्टयाए, (२) दंसणट्टयाए, (३) चरित्तट्टयाए, 卐 (४) आयरिय - उवज्झाया वा से वीसुंभेज्जा, (५) आयरिय - उवज्झायाण वा बहिया 5
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वे आवच्चकरणयाए ।
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१००. वर्षावास में पर्युषणाकल्प करने वाले निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को ग्रामानुग्राम विहार करना नहीं कल्पता है । किन्तु पाँच कारणों से विहार करना कल्पता है, जैसे- (१ - २) विशेष ज्ञान औरदर्शन की प्राप्ति के लिए। (३) चारित्र की रक्षा के लिए । ( ४ ) आचार्य या उपाध्याय की मृत्यु हो जाने पर अथवा उनका कोई अति महत्त्वपूर्ण कार्य करने के लिए। (५) वर्षाक्षेत्र से बाहर रहने वाले आचार्य या उपाध्याय की वैयावृत्त्य करने के लिए।
100. Nirgranth and nirgranthis (male and female ascetics) observing the Paryushanakalp (special code of conduct observed annually during monsoon-stay) are not allowed to move from one village to another during their varshavas (monsoon-stay of four months). However, they are allowed to do so for five reasons-If it is (1) for the purpose of 5 acquiring special jnana (knowledge ), ( 2 ) for the purpose of acquiring 5 special darshan ( perception / faith ), ( 3 ) for the purpose of protecting ascetic conduct, (4) on death of an acharya or upadhyaya or for some special mission entrusted by them, and (5) for serving some acharya or upadhyaya stationed away from the place of monsoon-stay.
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विवेचन - वर्षाकाल में एक स्थान पर रहने को वर्षावास कहते हैं। यह तीन प्रकार है - जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । (१) जघन्य वर्षावास - सावंत्सरिक प्रतिक्रमण के दिन से लेकर कार्तिकी पूर्णमासी तक ७०
स्थानांगसूत्र (२)
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Sthaananga Sutra (2)
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