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________________ 卐)))))))55555555555555555555555555555555555555 (3) Ushnisha (crown; sign of grandeur), (4) Upanah (shoes; sign of strict 1 rule) and (5) Baal vyajan (fanning whisks; sign of beauty and security). उदीर्णपरीषहोपसर्ग-सूत्र UDIRNAPARISHAHOPASARG-PAD (SEGMENT OF PRECIPITATED AFFLICTIONS AND TORMENTS) ७३. पंचहिं ठाणेहिं छउमत्थे णं उदिण्णे परिस्सहोवसग्गे सम्मं सहेजा खमेज्जा तितिक्खेजा अहियासेज्जा, तं जहा (१) उदिण्णकम्मे खलु अयं पुरिसे उम्मत्तगभूते। तेण मे एस पुरिसे अक्कोसति वा अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिभंछेति वा बंधेति वा रुंभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणमच्छिंदति वा विच्छिंदति वा भिंदति वा अवहरति वा। (२) जक्खाइट्टे खलु अयं पुरिसे। तेण मे एस पुरिसे अक्कोसति वा तहेव जाव अवहरति + (अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिभंछेति वा बंधेति वा रंभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणमच्छिंदति वा विच्छिंदति वा भिंदति वा) अवहरति वा। (३) ममं च ण तब्भववेयणिज्जे कम्मे उदिण्णे भवति। तेण मे एस पुरिसे अक्कोसति वा तहेव * जाव अवहरति (अवहसति वा णिच्छोडति वा णिभंछेति वा बंधेति वा रुंभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा णेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणमच्छिंदति वा विच्छिंदति वा भिंदति वा) अवहरति वा। (४) ममं च णं सम्ममसहमाणस्स अखममाणस्स अतितिक्खमाणस्स अणधियासमाणस्स किं + मण्णे कज्जति ? एगंतसो मे पावे कम्मे कण्यति। (५) ममं च णं सम्मं सहमाणस्स जाव (खममाणस्स तितिक्खमाणस्स) अहियासेमाणस्स किं मण्णे कज्जति ? एगंतसो मे णिज्जरा कज्जति। इच्चेतेहिं पंचहिं ठाणेहिं छउमत्थे उदिण्णे परिसहोवसग्गे सम्मं सहेजा जाव (खमेज्जा ॐ तितिक्खेज्जा) अहियासेज्जा। ७३. पाँच कारणों से छद्मस्थ पुरुष उदीर्ण-(उदय को प्राप्त) परीषहों और उपसर्गों को सम्यक् प्रकार से अविचल भाव के साथ सहता है, क्षान्ति रखता है, तितिक्षा रखता है और उनसे विचलित नहीं होता है। 卐 (१) यह पुरुष उदीर्णकर्मा है, इसलिए यह उन्मत्त (पागल) जैसा हो रहा है। इसी कारण यह मुझ ॥ पर आक्रोश करता है, या मुझे गाली देता है, या मेरा उपहास करता है, या मुझे बाहर निकालने की ॐ धमकी देता है, या मेरी निर्भर्त्सना (झिड़कियाँ देना) करता है, या मुझे बाँधता है, या रोकता है, या 151955))))))))))))5555555555555555555558 स्थानांगसूत्र (२) (124) Sthaananga Sutra (2) Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.002906
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages648
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size20 MB
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