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प्रश्नायतन कहलाता है। सूत्रोक्त पाँच कारणों से साधु का वेष छुड़ा कर उसे संघ से पृथक् करना है पारांचित प्रायश्चित्त-सबसे बड़ा प्रायश्चित्त कहलाता है।
Elaboration—Prashnayatan means indulging in acts of indiscipline si including invoking gods in thumb, arm or other parts of the body and provide answers about sinful rituals in order to astonish people.
Expulsion from the sangh by depriving of the ascetic garb for atonement i of the aforesaid five faults is called paaranchit prayashchit. It is the
highest degree of atonement. व्युद्ग्रहस्थान-पद WUDGRAHASTHAAN-PAD (SEGMENT OF CAUSE OF DISPUTE)
४८. आयरियउवज्झायस्स णं गणंसि पंच बुग्गहट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा
(१) आयरियउवज्झाए णं गणंसि आणं वा धारणं वा णो सम्मं पउंजित्ता भवति। (२) आयरियउवज्झाए णं गणंसि आहारातिणियाए कितिकम्मं णो सम्मं पउंजित्ता भवति। (३) आयरियउवज्झाए णं गणंसि जे सुत्तपज्जवजाते धारेति ते काले-काले णो सम्ममणुप्पवाइत्ता भवति। (४) आयरियउवज्झाए णं गणंसि गिलाणसेहवेयावच्चं णो सम्ममन्भुद्वित्ता भवति। (५) आयरियउवज्झाए णं गणंसि अणापुच्छियचारी यावि हवइं, णो आपुच्छियचारी।
४८. आचार्य और उपाध्याय के लिए गण में पाँच व्युद्ग्रहस्थान (विग्रह के हेतु) हैं-(१) आचार्य और उपाध्याय गण में आज्ञा तथा धारणा का सम्यक् प्रयोग न करें। (२) आचार्य और उपाध्याय गण में यथारालिक कृतिकर्म का सम्यक् प्रयोग न करें। (३) आचार्य और उपाध्याय जिन-जिन सूत्रपर्यवजातों (सूत्र के अर्थ-प्रकारों) को धारण करते हैं-जानते हैं, उनकी समय-समय पर गण को सम्यक् वाचना न दें। (४) आचार्य और उपाध्याय गण में रोगी और नवदीक्षित साधुओं की वैयावृत्य करने के लिए समुचित व्यवस्था न करें। (५) आचार्य और उपाध्याय गण को पूछे बिना ही अन्यत्र विहार आदि करें।
48. For an acharya or upadhyaya there are five vyudgrahasthaans (causes of dispute)-(1) Acharya or upadhyaya fails to properly assert his command (ajna and dharana). (2) Acharya or upadhyaya fails to properly instruct about and implement yatharatnik kritikarma (codes of protocol and conduct). (3) Acharya or upadhyaya fails to properly recite and teach the sutra paryavajat (meaning and interpretations of sutras) 卐 he has mastered. (4) Acharya or upadhyaya fails to make proper arrangements for care of neo-initates and ailing ascetics. (5) Acharya or upadhyaya fails to inform the gana (group) before leaving for other places.
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पंचम स्थान : प्रथम उद्देशक
(111)
Fifth Sthaan : First Lesson
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