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commencing it. (5) When he continues to perform proscribed acts transgressing the ascetic codes of discipline one after another and, on being admonished, insolently replies-"So what! I ..ill defy the codes. What can the seniors do to me?"
विवेचन-साधु-मण्डली में एक साथ बैठकर भोजन और स्वाध्याय आदि करने वाले साधुओं को + 'साम्भोगिक' कहते हैं। जब कोई साम्भोगिक साधु सूत्रोक्त पाँच कारणों में से किसी एक-दो या सब ही 4 स्थानों का प्रतिसेवन करता है, तब उसे आचार्य साधु-मण्डली से पृथक् कर देते हैं। ऐसे साधु को 卐 'विसम्भोगिक' कहा जाता है।
Elaboration–The ascetics who study collectively and eat together in a group are called sambhogik. When a sambhogik ascetic indulges in one two or all of the five proscribed acts, the acharya ostracizes him from that group. Such ostracized ascetic is called visambhogik. पारंचित-पद PARANCHIT-PAD (SEGMENT OF EXPULSION)
४७. पंचहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे साहम्मियं पारंचितं करेमाणे णातिक्कमति, तं जहा(१) कुले वसति कुलस्स भेदाए अब्भुट्ठिता भवति। (२) गणे वसति गणस्स भेदाए अब्भुढेत्ता भवति। म (३) हिंसप्पेही। (४) छिद्दप्पेही। (५) अभिक्खणं अभिक्खणं पसिणायतणाई पउंजित्ता भवति।
४७. पाँच कारणों से श्रमण-निर्ग्रन्थ अपने साधर्मिक को पारांचित करता हुआ भगवान की आज्ञा म का अतिक्रमण नहीं करता है। (१) जो साधु जिस कुल में रहता है, उसी में भेद (फूट) डालने का प्रयत्न
करता है। (२) जो साधु जिस गण में रहता है, उसी में भेद डालने का प्रयत्न करता है। (३) जो ॐ हिंसाप्रेक्षी होता है (कुल या गण के साधु का घात करना चाहता है)। (४) जो कुल या गण के सदस्यों है + को एवं अन्य जनों को हानि पहुँचाने के लिए छिद्रान्वेषण करता है। (५) जो बार-बार प्रश्नायतनों का ॥ ॐ प्रयोग करता है।
47. A Shraman Nirgranth does not defy the word of Bhagavan if he expels (paranchit) a sadharmik sambhogik (a co-relgionist team-mate)
for five reasons—(1) When he conspires to breed dissension within the 卐 kula (group of disciples of one acharya) he lives in. (2) When he conspires
to breed dissension within the gana (group of kulas) he lives in. (3) When he turns to be a himsaprekshi (desires to harm or kill a member of his fi kula or gana). (4) When he resorts to fault-finding in order to harm members of his kula and gana as well as outsiders. (5) When he repeatedly indulges in prashnayatan (indiscipline).
विवेचन-अंगुष्ठ, भुजा आदि में देवता को बुलाकर लोगों के प्रश्नों का उत्तर देकर उन्हें चमत्कृत फ़ करना, सावद्य अनुष्ठान के प्रश्नों का उत्तर देना और असंयम के आयतनों (स्थानों) का प्रतिसेवन करना ॥
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स्थानांगसूत्र (२)
(110)
Sthaananga Sutra (2)
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