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3 ४५. पाँच स्थानों से श्रमण-निर्ग्रन्थ महान् कर्म-निर्जरा और महा पर्यवसान वाला होता है। ऊ + () अग्लान भाव से शैक्ष-(नवदीक्षित मुनि) की वैयावृत्य करता हुआ। (२) अग्लान भाव से कुल
(एक आचार्य के शिष्य-समूह) की वैयावृत्य करता हुआ। (३) अग्लान भाव से गण-(अनेक 卐 कुल-समूह) की वैयावृत्य करता हुआ। (४) अग्लान भाव से संघ-(अनेक गण-समूह) की वैयावृत्य करता हुआ। (५) अग्लान भाव से साधर्मिक-(समान समाचारी वाले) की वैयावृत्य करता हुआ।
45. In five ways a Shraman Nirgranth accomplishes maha karmanirjara (great karma-shedding) and Mahaparyavasan (attaining liberation by shedding all karmas)—(1) By serving shaiksha (neoinitiates) without a feeling of dejection. (2) By serving kula (disciples of one acharya) without a feeling of dejection. (3) By serving gana (group of many kulas) without a feeling of dejection. (4) By serving sangh (group of many ganas) without a feeling of dejection. (5) By serving sadharmik (ascetics following the same praxis) without a feeling of dejection. विसंभोग-पद VISAMBHOG-PAD (SEGMENT OF OSTRACIZATION)
· ४६. पंचहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे साहम्मियं संभोइयं विसंभोइयं करेमाणे णातिक्कमति, तं जहा-(१) सकिरियट्ठाणं पडिसेवित्ता भवति। (२) पडिसेवित्ता णो आलोएइ। (३) आलोइत्ता णो पट्टवेति। (४) पट्टवेत्ता णो णिविसति। (५) जाई इमाई थेराणं ठितिपकप्पाई भवंति ताई अतियंचिय-अतियंचिय पडिसेवेति, से हंदऽहं पडिसेवामि किं मं थेरा करेस्संति ?
४६. पाँच स्थानों (कारणों) से श्रमण निर्ग्रन्थ अपने साधर्मिक साम्भोगिक को विसंभोगिक करे तो भगवान की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता-(१) जो सक्रिय स्थान-(अशुभ कर्म का बन्ध करने वाले अकृत्य कार्य) का प्रतिसेवन करता है। (२) जो आलोचना करने योग्य दोष का प्रतिसेवन कर आलोचना नहीं करता है। (३) जो आलोचना कर प्रस्थापना-(गुरु-प्रदत्त प्रायश्चित्त का प्रारम्भ) नहीं करता है। (४) जो प्रस्थापना कर निर्वेशन-(प्रायश्चित्त का पूर्ण रूप से पालन) नहीं करता। (५) जो स्थविरों के स्थितिकल्प-(साधु समाचारी की मर्यादाएँ) होते हैं, उनमें से एक के बाद दूसरे का अतिक्रमण कर प्रसिसेवना करता है तथा दूसरों के समझाने पर कहता है- “लो, मैं दोष का प्रतिसेवन करता हूँ, स्थविर मेरा क्या करेंगे?"
46. A Shraman Nirgranth does not defy the word of Bhagavan if he ostracizes (visambhogik) a sadharmik sambhogik (a co-relgionist teammate) for five reasons-(1) When he performs (pratisevan) a proscribed act entailing bondage of demeritorious karmas (sakriya sthaan). (2) When he does not do self-criticism after committing a mistake worth repenting. (3) When he does not accept atonement after criticizing his mistake. (4) When he does not conclusively perform atonement after
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पंचम स्थान :प्रथम उद्देशक
(109)
Fifth Sthaan: First Lesson
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