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विवेचन-कलह के कारण को व्युद्ग्रहस्थान अथवा विग्रहस्थान कहते हैं। कुछ विशिष्ट शब्दों का अर्थ के इस प्रकार है-आज्ञा-'हे साधो ! आपको यह करना चाहिए' इस प्रकार के विधेयात्मक आदेश। धारणा+ हे साधो ! आपको ऐसा नहीं करना चाहिए', इस प्रकार का निषेधात्मक आदेश। अथवा बार-बार
आलोचना के द्वारा प्राप्त प्रायश्चित्त-विशेष के अवधारण करने को भी टीकाकार ने धारणा कहा है। ॐ जैसे-आचार्य या उपाध्याय अपने गण के साधुओं को उचित कार्यों के करने का विधान और अनुचित ॥ • कार्यों का निषेध न करें, तो संघ में कलह उत्पन्न हो जाता है।
यथारात्निक कृतिकर्म-दीक्षा-पर्याय में छोटे-बड़े साधुओं के क्रम से वन्दनादि कर्त्तव्यों के निर्देश करना। इसीप्रकार यथारानिक साधुओं के विनय-वन्दनादि का संघस्थ साधुओं को निर्देश करना भी उनका आवश्यक कर्त्तव्य है, उसका उल्लंघन होने पर भी कलह हो सकता है।
सूत्र-पर्यवजातों की यथाकाल वाचना न देना। आचार्य या उपाध्याय को जितने भी श्रुत के पाठी हैं, दीक्षापर्याय के अनुसार अपने उन शिष्यों को यथाकाल यथाविधि वाचना देनी चाहिए। यदि वह ऐसा ॐ नहीं करता है, या व्युत्क्रम से वाचना देता है तो उसके ऊपर पक्षपात का दोषारोपण करके कलह खड़ा म हो सकता है।
Elaboration–The cause of dispute or strife is called uyudgrahasthaan 41 or vigrahasthaan. Explanations of other terms are as follows
Ajna-An assertive command, such as-'O ascetic ! You must do this.' Dharana-a prohibitive command such as-'0 ascetic ! You must not do this.' According to the commentator (Tika) dharana also means to observe specific atonement by repeated self reproachment of the committed fault. If an acharya or a upadhyaya fails to properly give 51 assertive and prohibitive commands to the ascetics of the group about right and wrong acts it would lead to a strife in the organization.
Yatharatnik kritikarma-to instruct about following the protocol of 41 period of initiation while paying homage or greeting senior and junior
ascetics. If the code of protocol is not taught to the ascetics they may fail to follow the same and that can lead to a strife.
Sutra-paryavajat-to recite and teach the sutra paryavajat (meaning and interpretations of sutras) timely. An acharya or upadhyaya is supposed to lecture his student disciples properly following a set timetable based on the period of initiation. If he fails to follow the programme he may be charged of favouritism and a strife may ensue.
४९. आयरियउवज्झायस्स णं गणंसि पंचावुग्गहट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा
(१) आयरियउवज्झाए णं गणंसि आणं वा धारणं वा सम्मं पउंजित्ता भवति। (२) एवमाहारातिणिताए (आयरियउवज्झाए णं गणंसि) आहारातिणिताए सम्मं किइकम्मं पउंजित्ता
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| स्थानांगसूत्र (२)
(112)
Sthaananga Sutra (2)
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