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39. For Shraman Nirgranths (Jain ascetics) Shraman Bhagavan Mahavir has described, glorified, explained, praised and commanded five y și sthaans (special resolves)-(1) Achamlik-having resolved to observe 46
ayambil (eating only once in a day food cooked or roasted comprising of single ingredient and that also without any salt or other condiments). (2) Nirvikritik-having resolved to abstain from eating all proscribed things including butter. (3) Purvardhik--having resolved not to eat food during first two quarters of the day. (4) Parimitapindapatik-having resolved to accept only a limited number of things or only from a limited number of houses. (5) Bhinnapindapatik-having resolved to accept food only in small portions.
४०. पंच ठाणाइं जाव (समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताई म णिच्चं कित्तिताई णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्चं) अब्भणुण्णाताई भवंति, तं जहाॐ अरसाहारे, विरसाहारे, अंताहारे, पंताहारे, लूहाहारे॥
४०. श्रमण भगवान महावीर ने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए पाँच (अभिग्रह) स्थान सदा वर्णित, कीर्तित, व्यक्त, प्रशंसित और अभ्यनुज्ञात किये हैं-(१) अरसाहार-हींग आदि के बघार व मसालों से रहित भोजन लेने वाला। (२) विरसाहार-पुराने धान्य का भोजन लेने वाला। (३) अन्त्याहार-बचा-खुचा आहार लेने वाला। (४) प्रान्ताहार-तुच्छ आहार लेने वाला। (५) रूक्षाहार-रूखा-सूखा आहार लेने वाला।
40. For Shraman Nirgranths (Jain ascetics) Shraman Bhagavan Mahavir has described, glorified, explained, praised and commanded five sthaans (special resolves) (1) Arasahar-having resolved to accept food free of any or all condiments and flavours. (2) Virasahar-having resolved to accept food made from fetid grains. (3) Antyahar-having resolved to accept only leftover food. (4) Prantahar-having resolved to accept only insipid or stale food. (5) Rukshahar-having resolved to accept dry and tasteless food.
४१. पंच ठाणाइं जाव (समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताई णिच्चं कित्तियाई णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्चं) अब्भणुण्णाताई भवंति, तं जहाअरसजीवी, विरसजीवी, अंतजीवी, पंतजीवी, लूहजीवी।
४१. श्रमण भगवान महावीर ने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए पाँच (अभिग्रह) स्थान सदा वर्णित, फ़ कीर्त्तित, व्यक्त, प्रशंसित और अभ्यनुज्ञात किये हैं-(१) अरसजीवी-रस रहित जाहार लेने वाला।
(२) विरसजीवी-रसरहित पुराना धान्य, भात आदि लेने वाला। (३) अन्त्यजीवी-बचा-खुचा आहार लेने ॐ वाला। (४) प्रान्तजीवी-तुच्छ आहार लेने वाला। (५) रूक्षजीवी-रूखा-सूखा आहार लेने वाला।
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स्थानांगसूत्र (२)
(106)
Sthaananga Sutra (2)
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