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நிதிமிக்கது*******மிமிததமி***************ழிழி
alms without revealing his caste and family. (2) Anyaglayakacharak— having resolved to seek alms only for some ailing ascetic or only when one is hungry. (3) Maunacharak-having resolved to seek alms silently. (4) Samsrishtakalpik-having resolved to accept alms only when hands or serving spoon is soiled with food. (5) Tajjat-samsrishta kalpik-having resolved to accept alms only when hands or serving spoon is soiled with the food offered.
३८. पंच ठाणाई जाव ( समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताइं णिच्चं कित्तिताई णिच्चं बुइयाइं णिच्चं पसत्थाई णिच्चं ) अब्भणुण्णाताई भवंति तं जहाउवणिहिए, सुद्धेसणिए, संखादत्तिए, दिट्ठलाभिए, पुट्ठलाभिए ।
३९. श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए पाँच ( अभिग्रह) स्थान सदा वर्णित, कीर्त्तित, व्यक्त, प्रशंसित और अभ्यनुज्ञात किये हैं- ( १ ) आचाम्लिक- 'आयंबिल' करने वाला। (२) निर्विकृतिक - घी आदि विकृतियों का त्याग करने वाला। (३) पूर्वार्धिक - दिन के पूर्वार्ध (प्रथम दो प्रहर में) भोजन नहीं करने के नियम वाला । (४) परिमितपिण्डपातिक - परिमित घरों या परिमित वस्तुओं की भिक्षा लेने वाला । (५) भिन्नपिण्डपातिक - खण्ड-खण्ड किये आहार की भिक्षा लेने वाला ।
पंचम स्थान : प्रथम उद्देशक
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३८. श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पाँच (अभिग्रह) स्थान सदा वर्णित, कीर्त्तित व्यक्त प्रशंसित और अभ्यनुज्ञात किये हैं- ( १ ) औपनिधिक - उपाश्रय के समीपवर्ती घरों से या अन्य स्थान फ से लाकर गृहस्थ के समीप रखे आहार को लेने वाला । (२) शुद्धैषणिक - एषणा के ४२ दोषों से रहित 5 निर्दोष आहार की गवेषणा करने वाला। (३) संख्यादत्तिक - सीमित संख्या में दत्तियों की संख्या का नियम 卐 करके आहार लेने वाला । (४) दृष्टलाभिक - सामने प्रत्यक्ष दीखने वाला आहार -पानी लेने वाला। 5 (५) पृष्टलाभिक - 'क्या भिक्षा लोगे ?' ऐसा पूछे जाने पर ही भिक्षा लेने वाला।
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38. For Shraman Nirgranths (Jain ascetics) Shraman Bhagavan Mahavir has described, glorified, explained, praised and commanded five 5 sthaans (special resolves)-(1) Aupanidhik-having resolved to accept alms only from nearby houses or food brought near the donor from some other place. (2) Shuddhaishanik-having resolved to seek pure alms free of all the 42 faults of alms-seeking. (3) Sankhyadattik-having resolved to accept specific number of servings only. (4) Drishtilabhik—having resolved to accept only out of the visible food. (5) Prishtalabhik-having resolved to accept alms only when asked-"Would you please accept alms?"
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Fifth Sthaan: First Lesson
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३९. पंच ठाणाई जाव ( समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताई णिच्चं कित्तिताइं णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्चं ) अब्भणुण्णाताई भवंति, तं जहा- 5 आयंबिलिए, णिव्विइए, पुरिमड्डिए, परिमितपिंडवातिए, भिण्णपिंडवातिए ॥
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