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३६. श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पाँच (अभिग्रह) स्थान सदा वर्णित किये हैं, फ कीर्त्तित किये हैं, व्यक्त किये हैं, प्रशंसित किये हैं और अभ्यनुज्ञात किये हैं- ( १ ) उत्क्षिप्तचरक - रांधने के 5 5 पात्र में से पहले ही बाहर निकाला हुआ निर्दोष आहार ग्रहण करने वाला अभिग्रहधारी । 15 ( २ ) निक्षिप्तचरक - यदि गृहस्थ राँधने के पात्र में से आहार दे तो मैं ग्रहण करूँगा, ऐसा अभिग्रह करने 5 वाला । (३) अन्तचरक - गृहस्थ- परिवार के भोजन करने के पश्चात् बचा खुचा आहार ग्रहण करने 5 वाला अभिग्रहधारी । ( ४ ) प्रान्तचरक - तुच्छ या वासी आहार लेने का अभिग्रहधारी । (५) रूक्षचरक - सर्व 5 प्रकार के रसों से रहित रूखा आहार ग्रहण करने का अभिग्रहधारी ।
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சுழத்தமிழசுததமிமிமிமிமிமிமிததமி***தமிமிமிமிமிததமிழில்
36. For Shraman Nirgranths (Jain ascetics) Shraman Bhagavan Mahavir has described, glorified, explained, praised and commanded five sthaans (special resolves)-(1) Utkshiptacharak-having resolved to accept only the portion taken out from the cooking pot in advance. (2) Nikshiptacharak-having resolved to accept only if served directly 5 from the cooking pot. (3) Antacharak - having resolved to accept only if फ्र offered leftovers after the family has eaten. (4) Prantacharak-having resolved to accept only if the food is insipid or stale. (5) Rukshacharakhaving resolved to accept only if the food is dry and tasteless.
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विवेचन - प्रथम दो भाव-अभिग्रह हैं, इनका सम्बन्ध भिक्षाचरी से है। शेष तीन द्रव्य - अभिग्रह हैं । इनका कथन रस परित्याग के अन्तर्गत है ।
Elaboration-First two statements are related to alms seeking and the remaining three are resolves about content of alms indicating abstainment of tasty food.
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३७. पंच ठाणाई जाव (समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताई 卐 णिच्चं कित्तियाई णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाइं णिच्चं ) अब्भणुण्णाताई भवंति तं जहा- 5 अण्णातचरए, अण्णइलायचरए, मोणचरए, संसट्टकप्पिए, तज्जातसंसट्टकप्पिए ।
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३७. श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पाँच ( अभिग्रह) स्थान सदा वर्णित, कीर्त्तित, व्यक्त, प्रशंसित और अभ्यनुज्ञात किये हैं- (१) अज्ञातचरक - अपनी जाति - कुलादि को बताये बिना भिक्षा लेने वाला। (२) अन्यग्लायकचरक - दूसरे रोगी मुनि के लिए भिक्षा लाने वाला अथवा भूख लगने पर ही भिक्षाचरी करने वाला । (३) मौनचरक - मौनपूर्वक भिक्षा लाने वाला। (४) संसृष्टकल्पिकभोजन से लिप्त हाथ या कड़छी आदि से भिक्षा लेने वाला । (५) तज्जात - संसृष्टकल्पिक -देय द्रव्य से लिप्त हाथ आदि से भिक्षा लेने वाला ।
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37. For Shraman Nirgranths (Jain ascetics) Shraman Bhagavan Mahavir has described, glorified, explained, praised and commanded five sthaans (special resolves ) — (1) Ajnatacharak - having resolved to seek 5
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स्थानांगसूत्र (२)
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Sthaananga Sutra (2)
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