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किण्हे, पीले, लोहिते, हालिद्दे, सुक्किल्ले । तित्ते, कडुए, कसाए, अंबिले, महुरे । २९. तेययसरीरे फ्र पंचवणे पंचरसे पण्णत्ते, तं जहा - किण्हे, णीले, लोहिते, हालिद्दे, सुक्किल्ले । तित्ते, कडुए,
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कसाए, अंबिले, महुरे । ३० कम्मगसरीरे पंचवण्णे पंचरसे पण्णत्ते, तं जहा - किण्हे, णीले, 5 कडुए, कसाए, अंबिले, महुरे ।
लोहिते, हालिदे, सुक्किल्ले । तित्ते,
२६. औदारिक शरीर पाँच वर्ण और पाँच रस वाला होता है - (१) कृष्ण, (२) नील, (३) लोहित,
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(४) हारिद्र और (५) श्वेत वर्ण वाला । (१) तिक्त, (२) कटुक, (३) कषाय, (४) अम्ल और (५) मधुर 5
रस वाला । २७. इसी प्रकार वैक्रिय शरीर पाँच वर्ण और पाँच रस वाला होता है । २८. आहारक
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शरीर पाँच वर्ण और पाँच रस वाला होता है। २९. तैजस् शरीर पाँच वर्ण और पाँच रस वाला होता है । ३०. कार्मण शरीर पाँच वर्ण और पाँच रस वाला होता है।
26. Audarik sharira is of five varna (colours) and five rasa (tastes ) -
(1) krishna (black), (2) neel (blue), (3) lohit (red), (4) haridra (yellow) and (5) shukla (white ) colours. ( 1 ) tikta (bitter ), (2) katu ( pungent), 5 ( 3 ) kashaya ( astringent ), ( 4 ) amla (sour) and (5) madhur (sweet) tastes. 5 27. In the same way vaikriya sharira (transmutable body) is of five 5 colours and five tastes. 28. Aharak sharira (telemigratory body) is of five colours and five tastes. 29. Taijas sharira ( fiery body) is of five colours and five tastes. 30. Karman sharira (karmic body) is of five colours and five tastes.
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३१. सव्वेवि णं बादरबोंदिधरा कलेवरा पंचवण्णा पंचरसा दुगंधा अट्ठफासा ।
३१. सभी बादर (स्थूल) शरीर के धारक कलेवर पाँच वर्ण, पाँच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श वाले होते हैं। (पाँच शरीर का विशेष वर्णन व चित्र देखें अनुयोग द्वार भाग - २ पृष्ठ २२५)
(SEGMENT OF DIFFERENCE IN RELIGIOUS ORDERS)
३२. पंचहि ठाणेहिं पुरिम - पच्छिमगाणं जिणाणं दुग्गमं भवति, तं जहा- दुआइक्खं, दुव्विभज्जं, दुपस्सं, दुतितिक्खं, दुरणुचरं । ३३. पंचहिं ठाणेहिं मज्झिमगाणं जिणाणं सुग्गमं भवति, तं जहा - सुआइक्खं, सुविभज्जं, सुपस्सं, सुतितिक्खं, सुरणुचरं ।
31. All beings having badar sharira (gross body) have five colours, five tastes, two smells and eight touches. (for more information about five bodies see Illustrated Anuyogadvar Sutra, part-2, p. 225)
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तीर्थभेद - पद TIRTHABHED-PAD
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३२. प्रथम और अन्तिम तीर्थंकरों के शासन में ये पाँच स्थान दुर्गम (दुर्बोध्य / कठिन) होते हैं(१) दुराख्येय - धर्मतत्त्व का व्याख्यान करना । (२) दुर्विभाज्य तत्त्व को अपेक्षा दृष्टि से समझाना । (३) दुर्दर्श - तत्त्व का युक्तिपूर्वक निदर्शन करना। ( ४ ) दुस्तितिक्ष-उपसर्ग - परीषहादि का सहन करना। फ्र
पंचम स्थान : प्रथम उद्देशक
Fifth Sthaan: First Lesson
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