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________________ 55555555555555555555555555555555555555555555555555 卐 any claimants. Pahinaguttagaraim-those whose name, class, sketch and other signs have been lost. २२. पंचहिं ठाणेहिं केवलवरणाणदंसणे समुप्पज्जिउकामे तप्पढमयाए णो खंभाएज्जा, तं जहा (१) अप्पभूतं वा पुढविं पासित्ता तप्पढमयाए णो खंभाएज्जा। (२) सेसं तहेव जाव (कुंथुरासिभूतं वा पुढविं पासित्ता तप्पढमयाए णो खंभाएज्जा)। (३) महतिमहालयं वा महोरगसरीरं पासित्ता ॐ तप्पढमयाए णो खंभाएज्जा। (४) देवं वा महिड्डियं महज्जुइयं महाणुभागं महायसं महाबलं महासोक्खं है पासित्ता तप्पढमयाए णो खंभाएज्जा। (५) (पुरेसु वा पोराणाई उरालाई महतिमहालयाई ॐ महाणिहाणाई पहीणसामियाई पहीणसेउयाई पहीणगुत्तागाराई उच्छिण्णसामियाई उच्छिण्णसेउयाई उच्छिण्णगुत्तागाराई जाई इमाई गामागर-णगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणासम+ संबाह-सण्णिवेसेसु सिंघाडग-तिगचउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु-णगर-णिद्धमणेसु3 सुसाण-सुण्णागार-गिरिकंदर-संति सेलोवट्ठावण) भवन-गिहेसु सण्णिक्खित्ताई चिटुंति, ताई वा पासित्ता तप्पढमयाए णो खंभाएज्जा। सेसं तहेव। इच्चेतेहिं पंचहिं ठाणेहिं जाव (केवलवरणाणदंसणे समुप्पज्जिउकामे तप्पढमयाए) ॐ जाव णो खंभाएज्जा। २२. पाँच कारणों से उत्पन्न होता हुआ केवल-ज्ञान-दर्शन अपने प्रारम्भिक क्षणों में स्तम्भित या के क्षुब्ध नहीं होता है-(१) पृथ्वी को छोटी या अल्पजीव वाली देखकर, (२) कुंथु आदि सूक्ष्म जीव-राशि + से भरी हुई पृथ्वी को देखकर, (३) बड़े-बड़े महोरगों के शरीरों को देखकर, (४) महा ऋद्धि वाले, ॐ महाद्युति वाले, महानुभाव, महान् यशस्वी, महान् बलशाली और महान् सुख वाले देवों को देख कर, ॐ 5 (५) पुरों में, ग्रामों में, आकरों में, नगरों में, खेटों में, कर्वटों में, मडम्बों में, द्रोणमुखों में, पत्तनों में, 5 4 आश्रमों में, संबाधों में, सन्निवेशों में, शृंगाटकों, तिराहों, चौकों, चौराहों, चौमुहानों और छोटे-बड़े मार्गों म में गलियों में, नालियों में, श्मशानों में, शून्य गृहों में, गिरिकन्दराओं में, शान्तिगृहों में, शैलगृहों में, उपस्थानगृहों में और भवन-गृहों में दबे हुए एक से एक बड़े महानिधानों को,-जिन तक पहुँचने के मार्ग ॐ प्रायः नष्ट हो चुके हैं, जिनके नाम और संकेत विस्मृत प्रायः हो चुके हैं और जिनके उत्तराधिकारी कोई म नहीं हैं, उन्हें देखकर। वृत्तिकार के अनुसार उनके चलायमान नहीं होने के मुख्य चार हेतु हैं-(१) यथार्थ वस्तु दर्शन, (२) मोहनीय कर्म का क्षीण हो जाना, (३) भय, विस्मय व लोभ का सर्वथा अभाव ४ अति गम्भीरता। इन पाँचों कारणों से उत्पन्न होता हुआ केवल ज्ञान-दर्शन अपने प्रारम्भिक क्षणों में स्तम्भित नहीं होता। 22. For five reasons emerging Keval (jnana and) darshan does not get stambhit (arrested) during the initial moments of its emergence 听听听听听听听听听听听F555555558 स्थानांगसूत्र (२) (98) Sthaananga Sutra (2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002906
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages648
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size20 MB
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