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B) ) )) ) ) ) ) )) ) ) ) ) ) )) ) ) ) )) ) ) ) ) ) 55 ignore the setbacks due to indulgence and to think of perpetuating the s experience. (4) Griddhi is discontent with the acquired and wish to
acquire more. (5) Adhyupapannata is to get fully absorbed in indulgence
and intensely think for more. (Vritti Part-2, p. 502) ॐ १२. पंच ठाणा अपरिण्णाता जीवाणं अहिताए असुभाए अखमाए अणिस्सेस्साए अणाणुगामियत्ताए
भवंति, तं जहा-सद्दा जाव (रूवा, गंधा, रसा), फासा। १३. पंच ठाणा सुपरिण्णाता जीवाणं हिताए म सुभाए, जाव (खमाए णिस्सेस्साए) आणुगामियत्ताए भवंति, तं जहा-सद्दा, जाव (रूवा, गंधा, रसा), फासा।
१२. पाँच स्थान अपरिज्ञात होने से जीवों के अहित के लिए, अशुभ के लिए, अक्षमता के लिए, + अनिःश्रेयस् के लिए और अननुगामिता के लिए होते हैं-(१) शब्द, (२) रूप, (३) गन्ध, (४) रस, 5
(५) स्पर्श। १३. ये ही शब्द आदि पाँच स्थान सुपरिज्ञात होने से जीवों के हित के लिए, शुभ के लिए, क्षमता के लिए, निःश्रेयस् के लिए और अनुगामिता के लिए होते हैं।
12. When aparijnat (not properly known and not consciously renounced) five sthaans (subjects) entail ahit (harm), ashubh (demerit), akshamata (shortcomings), anihshreyas (misfortune) and ananugamita
iction)-(1) shabd (sound), (2) rupa (form or appearance), (3)gandh (smell), (4) rasa (taste) and (5) sparsh (touch). 13. When suparijnat 4 (known and renounced) these very five sthaans (subjects) entail hit 4
(benefit), shubh (merit), kshamata (ability), nihshreyas (fortune) and __anugamita (endowment).
विवेचन-अपरिज्ञात का भाव है-इनको जाने बिना और त्याग किये बिना। सुपरिज्ञात का अर्थ है- ' जाने और प्रत्याख्यान करे। (१) अहित-अपाय या अनिष्ट। (२) अशुभ-पुण्य रहित। (३) अक्षम
असामर्थ्य या अनौचित्य, (४) अनिःश्रेयस-अकल्याण, (५) अननुगामिता-परलोक आदि में उपकार की ज म दृष्टि से साथ नहीं देने वाला। वैसे प्रतिपाद्य विषय पर अधिक बल देने के लिए इन शब्दों का प्रयोग के किया गया है। (वृत्ति भाग २ पृष्ठ ५०३)
Elaboration-Aparijnat indicates—without knowing and renouncing these. Suparijnat indicates—to know and renounce these. Ahit-harm or injury. Ashubh-devoid of punya or merit. Akshamata--inability or shortcomings. Anihshreyas-misfortune or detriment. Ananugamitastate of being deserted by virtues that lead to future beatitude. These terms have been used here for special emphasis on the subject under reference. (Vritti Part-2, p. 503)
१४. पंच ठाणा अपरिण्णाता जीवाणं दुग्गतिगमणाए भवंति, तं जहा-सद्दा, जाव (रूवा, गंधा, रसा), फासा। १५. पंच ठाणा सुपरिण्णाता जीवाणं सुगतिगमणाए भवंति, तं जहा-सद्दा, ऊ जाव (रूवा, गंधा, रसा), फासा।
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स्थानांगसूत्र (२)
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