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ॐ
समुद्र-पद SAMUDRA-PAD (SEGMENT OF SEAS)
६५२. चत्तारि समुद्दा पत्तेयरसा पण्णत्ता, तं जहा-लवणोदे, वरुणोदे, खीरोदे, घतोदे।
६५२. चार समुद्र प्रत्येक रस (भिन्न-भिन्न रस) वाले हैं-(१) लवणोदक-लवण-रस के समान खारा (नमकीन) पानी। (२) वरुणोदक-मदिरा-रस के समान नशीला पानी। (३) क्षीरोदक-दुग्ध-रस के समान श्वेत, मधुर पानी। (४) घृतोदक-घृत-रस के समान स्निग्ध पानी। ___652. There are four seas having different rasa (taste or quality)(1) Lavanodak-with salt-like salty water, (2) Varunodak-with winelike intoxicating water, (3) Kshirodak-with milk-like white and sweet water and (4) Ghritodak-with butter-like oily water.
म कषाय-पद KASHAYA-PAD (SEGMENT OF PASSIONS)
६५३. चत्तारि आवत्ता पण्णत्ता, तं जहा-खरावत्ते, उण्णतावत्ते, गूढावत्ते, आमिसावत्ते।
एवामेव चत्तारि कसाया पण्णत्ता, तं जहा-खरावत्तसमाणे कोहे, उण्णतावत्तसमाणे माणे, गूढावत्तसमाणा माया, आमिसावत्तसमाणे लोभे।
(१) खरावत्तसमाणं कोहं अणुपविढे जीवे कालं करेति, णेरइएसु उववज्जति। (२)(उण्णतावत्तसमाणं माणं अणुपविढे जीवे कालं करेति, णेरइएसु उववज्जति। (३) गूढावत्तसमाणं मायं अणुपविटे जीवे कालं करेति, णेरइएसु उवजति)। (४) आमिसावत्तसमाणं लोभमणुपविटे जीवे कालं करेति, णेरइएसु उववजति।
६५३. चार आवर्त (भँवर-गोलाकार घुमाव) कहे हैं-(१) खरावर्त-अतिवेगशाली जल-तरंगों के ॐ मध्य होने वाला गोलाकार भँवर। (२) उन्नतावर्त-पर्वत-शिखर के ऊपर चढ़ने का घुमावदार मार्ग, या + वायु का गोलाकार बवंडर। (३) गूढावर्त-गेंद व वनस्पतियों के भीतर की गाँठ के समान एक के भीतर 5
एक छिपे गोलाकर आवर्त। (४) आमिषावर्त-माँस के लिए मँडराने वाले गिद्ध आदि पक्षियों का आकाश 卐 में चक्कर काटना।
इसी प्रकार कषाय भी चार प्रकार के कहे हैं-(१) खरावर्त-समान-क्रोध कषाय। (२) उन्नतावर्त+ समान-मान कषाय। (३) गूढावर्त-समान-माया कषाय। (४) आमिषावर्त-समान-लोभ कषाय।
इन चार कषायों में फँसा जीव काल करके नारकों में उत्पन्न होता है। ___653. There are four kinds of aavart (spirals)-(1) Kharavartwhirlpool like spiral. (2) Unnatavart-whirlwind like spiral or one like a winding path uphill. (3) Goodhavart-spiral like concealed layers inside
a ball or a knot in a plant. (4) Amishavart-spiral resembling the path of Si a vulture hovering over a carcass.
स्थानांगसूत्र (२)
(84)
Sthaananga Sutra (2)
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