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In the same way kashaya (passions) are of four kinds-(1) anger is like kharavart, (2) conceit is like unnatavart, (3) deceit is like goodhavart fi and (4) greed is like amishavart. A being trapped in these four passions goes to hell after death.
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नक्षत्र-पद NAKSHATRA-PAD (SEGMENT OF CONSTELLATIONS)
६५४. अणुराहाणक्खत्ते चउत्तारे पण्णत्ते। ६५५. पुव्वासाढा (णक्खत्ते चउत्तारे पण्णत्ते)। ६५६. एवं चेव उत्तरासाढा (णक्खत्ते चउत्तारे पण्णत्ते)।
६५४. अनुराधा नक्षत्र के चार तारे हैं। ६५५. पूर्वाषाढा नक्षत्र के चार तारे हैं। ६५६. इसी प्रकार उत्तराषाढा नक्षत्र के चार तारे हैं। ____654. Anuradha (Delta Scorpii) constellation has four stars. 655. Purva Ashadha (Delta Sagittarii; the) constellation has four stars. 656. In the same way Uttara Ashadha (Sigma Sagittarii; the) constellation has four
stars. में पापकर्म-पद PAAP-KARMA-PAD (SEGMENT OF DEMERITORIOUS KARMA)
६५७. जीवा णं चउट्ठाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा-णेरइयणिव्यत्तिते, तिरिक्खजोणियणिवत्तिते, मणुस्सणिव्यत्तिते, देवणिवत्तिते। ६५८. एवं# उवचिणिंसु वा उवचिणंति वा उवचिणिस्संति वा। एवं-चिण-उवचिण-बंध-उदीर-वेय तह मणिज्जरा चेव।
६५७. अतीत में सभी जीवों ने इन चार कारणों से उपार्जित कर्म-पुद्गलों को पाप कर्म रूप में संचित किया है, वर्तमान में संचित कर रहे हैं और भविष्य में संचित करेंगे। जैसे-(१) नैरयिक # निर्वर्तित, (२) तिर्यग्योनिक निर्वर्तित, (३) मनुष्य निर्वर्तित, (४) देवनिर्वर्तित। ६५८. इसी प्रकार
जीवों ने उक्त नैरयिक आदि चारों स्थानों से उपार्जित कर्म पुद्गलों का उपचय, बंध, उदीरण, वेदन में और निर्जरण किया है, कर रहे हैं और करेंगे।
657. All beings did, do and will acquire (sanchit) karma particles in the form of demeritorious karmas in the past, present and future respectively four ways-(1) nairayik nirvartit (earned as infernal beings), (2) tiryagyonik nirvartit (earned as animals), (3) manushya nirvartit (earned as human beings) and (4) deva nirvartit (earned as divine beings). 658. In the same way all beings did, do and will augment (upachaya), bond (bandh), fructify (udiran), experience (vedan) and shed
(nirjaran) the acquired karma particles in the past, present and future F respectively in aforesaid four ways.
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चतुर्थ स्थान : चतुर्थ उद्देशक
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Fourth Sthaan : Fourth Lesson
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