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5 555555555555555555 + (३) मारणान्तिक दशा में मरण के अन्तर्मुहूर्त पहले, जीव के कुछ प्रदेश निकल कर जहाँ उत्पन्न ज होना है, वहाँ तक फैलते चले जाते हैं और उस स्थान का स्पर्श कर वापिस शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं। ॥ # इसे मारणान्तिक समुद्घात कहते हैं। इसके कुछ क्षण के बाद जीव का मरण होता है।
(४) शरीर के छोटे-बड़े आकारादि बनाने को वैक्रिय समुद्घात कहते हैं। नारक जीवों के समान है वायुकायिक जीवों के भी निमित्त विशेष से शरीर छोटे-बड़े रूप में संकुचित-विस्तृत होते रहते हैं। ॐ अतः उनके वैक्रिय समुद्घात बताया है।
Elaboration–The process of bursting forth of some soul-space-points for some specific purpose and without completely abandoning the body is called Samudghat. Seven classes of Samudghat are mentioned in aphorism 138 of the Seventh Sthaan of this book. Out of these, infernal beings and air-bodied beings have only four types.
(1) Bursting forth of some soul-space-points due to intensity of pain is called Vedana Samudghat.
(2) Bursting forth of some soul-space-points due to intensity of passions is called Kashaya Samudghat.
(3) One Antarmuhurt before the moment of death some soul-space-4 5 points burst forth and shrink back after spreading and touching the 41
place of rebirth. This process is called Maranantik Samudghat. A few moments after this the being dies.
(4) Employing the said process to create small or large bodies is called Vaikriya Samudghat.
Like infernal beings, air-bodied beings also continue to expand and shrink into large and small bodies under specific conditions. Therefore they are capable of undergoing Vaikriya Samudghat. चतुर्दशपूर्वि-पद CHATURDASH PURVI-PAD
(SEGMENT OF CHATURDASH PURVI) ६४७. अरहतो णं अरिट्ठणेमिस्स चत्तारि सया चोद्दसपुवीणमजिणाणं जिणसंकासाणं सव्वक्खरसण्णिवाईणं जिणो इव अवितथं वागरमाणाणं उक्कोसिया चउद्दसपुविसंपया हुत्था।
६४७. अरहन्त अरिष्टनेमि के शासन में चतुर्दश-पूर्व-वेत्ता मुनियों की चार सौ उत्कृष्ट संपदा थी। ॐ वे जिन नहीं होते हुए भी जिनके समान सर्वाक्षरसन्निपाती-(सभी अक्षरों के संयोग से बने संयुक्त पदों के 5
और उनसे निर्मित बीजाक्षरों के ज्ञाता) थे, तथा 'जिन' के समान ही सत्य कथन करने वाले थे। यह है ॐ अरिष्टनेमि के शासन में चौदह पूर्वियों की उत्कृष्ट सम्पदा थी।
स्थानांगसूत्र (२)
(82)
Sthaananga Sutra (2)
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