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15555555555555555555555555555555555555 पूर्ववस्तु-पद PURVAVASTU-PAD (SEGMENT OF PURVAVASTU)
६४३. उप्पायपुवस्स णं चत्तारि चूलवत्थु पण्णत्ता।
६४३. उत्पाद पूर्व (चतुर्दश पूर्वगत श्रुत का प्रथम भेद) के चूलावस्तु नामक चार अधिकार हैं, अर्थात् उसमें चार चूलाएँ थी।
643. Utpaad Purva (the first volume of the fourteen volume subtle canon) has four sections named Chulavastu. In other words it had four Chulas (appendices). काव्य-पद KAVYA-PAD (SEGMENT OF POETRY)
६४४. चउबिहे कव्वे पण्णत्ते, तं जहा-गज्जे, पज्जे, कत्थे, गेए।
६४४. काव्य चार प्रकार के कहें हैं-(१) गद्य-काव्य, (२) पद्य-काव्य, (३) कथ्य-काव्य (कथा प्रधान, (४) गेय-काव्य (गीति-प्रधान) ____644. Kavya (poetry) is of four kinds—(1) gadya-kavya (prose-poetry), (2) padya-kavya (poetry), (3) kathya-kavya (narrative poetry) and (4) geya-kavya (song). समुद्घात-पद SAMUDGHAT-PAD (SEGMENT OF SAMUDGHAT)
६४५. णेरइयाणं चत्तारि समुग्धाता पण्णत्ता, तं जहा-वेयणासमुग्धाते, कसायसमुग्गघाते, मारणंतियसमुग्घाते, वेउब्वियसमुग्घाते। ६४६. एवं-वाउक्काइयाणवि।
६४५. नारक जीवों के चार समुद्घात होते हैं-(१) वेदना-समुद्घात, (२) कषाय-समुद्घात, (३) मारणान्तिक-समुद्घात (मृत्यु काल में), (४) वैक्रिय-समुद्घात। ६४६. इसी प्रकार वायुकायिक जीवों के भी चार समुद्घात होते हैं। ...
645. Naarak jivas (infernal beings) have four kinds of Samudghat (bursting; the process employed for transmutation and transformation) (1) Vedana Samudghat, (2) Kashaya Samudghat, (3) Maranantik Samudghat and (4) Vaikriya Samudghat. 646. In the same way airbodied beings also have four kinds of Samudghat.
विवेचन-मूल शरीर को नहीं छोड़ते हुए किसी कारण-विशेष से जीव के कुछ आत्म प्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना समुद्घात हैं। समुद्घात के सात भेद आगे सातवें स्थान सूत्र १३८ में कहे गये हैं। उनमें से नारक और वायुकायिक जीवों में केवल चार समुद्घात होते हैं।
(१) वेदना की तीव्रता से जीव के कुछ प्रदेशों का बाहर निकलना वेदनासमुद्घात है। (२) कषाय की तीव्रता से जीव के कुछ प्रदेशों का बाहर निकलना कषायसमुद्घात है।
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चतुर्थ स्थान : चतुर्थ उद्देशक
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Fourth Sthaan : Fourth Lesson
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