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Chaitra, and by five things (air, clouds, thunder, lightening and water) in ¥ the month of Vaishakh. (1) (Collative Verse) ६४२. चत्तारि मणुस्सीगब्भा पण्णत्ता, तं जहा-इत्थित्ताए, पुरिसत्ताए, णपुंसगत्ताते, बिंबत्ताए।
अप्पं सुक्कं बहुं ओयं, इत्थी तत्थ पजायति। अप्पं ओयं बहुं सुक्कं, पुरिसो तत्थ जायति॥१॥ दोण्हंपि रत्तसुक्काणं, तुल्लभावे णपुंसओ।
इत्थी ओय-समायोगे, बिंबं तत्थ पयायति॥२॥ (संग्रहणी-गाथा) ६४२. मनुष्य स्त्री के गर्भ चार प्रकार के होते हैं (१) स्त्री के रूप में, (२) पुरुष के रूप में, (३) नपुंसक के रूप में, (४) बिम्ब रूप में।
(१) जब गर्भ-काल में पुरुष का शुक्र (वीर्य) अल्प और स्त्री का ओज (रज) अधिक होता है, तब 卐 उस गर्भ से स्त्री उत्पन्न होती है। जब ओज अल्प और शुक्र अधिक होता है, तो उस गर्भ से पुरुष उत्पन्न होता है।
(२) जब रक्त (रज) और शुक्र इन दोनों की समान मात्रा होती है, तब नपुंसक उत्पन्न होता है। वायु विकार के कारण स्त्री के ओज (रक्त) के समायोग से (जम जाने से) बिम्ब उत्पन्न होता है। $ 642. The human embryo in the womb of a woman is of four kinds, (1) as female, (2) as male, (3) as eunuch and (4) as image (lump).
When at the time of conception the number of sperms is less than 4 that of ova a female embryo is formed in the womb. When the number of sperms is more than that of ova a male embryo is formed. (1)
When the number of sperms and ova is same an eunuch embryo is formed. When ova fuse and solidify due to disturbed air (one of the body humours) an image or lump is formed. (2) (Collative Verse)
विवेचन-पुरुष-संयोग के बिना भी स्त्री का रज वायु-विकार से पिण्ड रूप में गर्भ-स्थित होकर बढ़ने लगता है, वह गर्भ के समान बढ़ने से बिम्ब या प्रतिबिम्बरूप गर्भ कहा जाता है, पर उससे सन्तान का जन्म नहीं होता। किन्तु एक गोल-पिण्ड निकल कर फूट जाता है। आयुर्वेद के ग्रन्थ भी इस बात का समर्थन करते हैं।
Elaboration-Without being fertilized by a sperm ova combine and start growing into a lump due to disturbed humours. As it continues to
grow like a fetus but does not form into a child it is called a mirror image 4like fetus. It comes out as a large lump and disintegrates. Ayurveda
confirms this.
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Torse
स्थानांगसूत्र (२)
(80)
Sthaananga Sutra (2)
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