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१२७. अवसर्पिणी एक है । १२८. सुषम- सुषमा एक है। १२९. [ सुषम एक है। १३०. सुषम- फ्र दुषमा एक है । १३१. दुषम- सुषमा एक है। १३२. दुषमा एक है। ] १३३. दुषम-दुषमा एक है। १३४. उत्सर्पिणी एक है । १३५. दुषम- दुषमा एक है। [१३६. दुषमा एक है। १३७. दुषम- 5 सुषमा एक है। १३८. सुषम - दुषमा एक है। १३९. सुषमा एक है। ] १४०. सुषम - सुषमा एक है। 卐 127. Avasarpini ( regressive half-cycle of time) is one. 128. Sukham- 5 sukhama (epoch of extreme happiness) is one. 129. [Sukham ( epoch of 5 happiness) is one. 130. Sukham-dukhama (epoch of more happiness than sorrow) is one. 131. Dukham-sukhama (epoch of more sorrow than happiness) is one. 132. Dukhama (epoch of sorrow) is one.] 133. Dukhamdukhama (epoch of extreme sorrow) is one.
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विवेचन-काल अनादि - अनन्त है और सतत प्रवर्तमान है । उतार-चढ़ाव की अपेक्षा से उसे कालचक्र कहा जाता है। उसके दो प्रमुख भेद हैं-अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी । अवसर्पिणी काल में मनुष्यों आदि की बल, बुद्धि, देह-मान, आयु-प्रमाण आदि की तथा पुद्गलों में उत्तम वर्ण, गन्ध आदि की क्रमशः हानि होती है और उत्सर्पिणी काल में उनकी क्रमशः वृद्धि होती है । रथ चक्र की भाँति इनमें से प्रत्येक के छह-छह भेद होते हैं, जो छह आरों के नाम से प्रसिद्ध हैं । अवसर्पिणी काल का प्रथम आरा अतिसुखमय है, जो चार कोटा - कोटि सागरोपम प्रमाण है। दूसरा आरा तीन कोटा-कोटि सागरोपम प्रमाण है। सुखमय है। तीसरा सुख-दुःखमय है, चौथा दुःख-सुखमय है, पाँचवाँ ( इक्कीस हजार वर्ष प्रमाण) दुःखमय है और छठा अतिदुःखमय है।
उत्सर्पिणी; अवसर्पिणी काल का उल्टा क्रम होता है। इस कालचक्र के उक्त आरों का परिवर्तन भरत और ऐरवत क्षेत्र में ही होता है, अन्यत्र नहीं होता। (स्पष्टता के लिए देखें संलग्न चित्र ।)
134. Utsarpini ( progressive half-cycle of time ) is one. 135. Dukhamdukhama (epoch of extreme sorrow) is one.] 136. Dukhama (epoch of sorrow) is one. 137. Dukham-sukhama (epoch of more sorrow than happiness) is one. 138. Sukham-dukhama (epoch of more happiness than sorrow) is one. 139. Sukhama ( epoch of happiness) is one. ] 140. Sukham- 5 sukhama (epoch of extreme happiness) is one.
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Elaboration-Time is eternal as well as beginningless and endless.
In context of progressive and regressive living conditions it is called cycle
स्थानांगसूत्र ( १ )
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5 of time. It has two main divisions — Avasarpini ( regressive half-cycle of 5 5 time) and Utsarpini ( progressive half-cycle of time ). During the regressive 5 half-cycle there is a gradual decline in strength, wisdom, size of the body, फ्र life-span and other qualities of living beings including humans. The same
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is true in case of properties of matter, such as good appearance, smell etc. During the progressive half-cycle there is gradual improvement in the
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Sthaananga Sutra (1)
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