________________
卐5555555555555555555555555555555555
__ आत्म-सिद्धि सबकी एक सदृश है अतः सिद्ध भी एक हैं। समस्त विकारी भावों के अभाव को परिनिर्वाण मोक्ष कहते हैं तथा शारीरिक और मानसिक अस्वस्थता का अभाव होने पर परम शान्ति प्राप्त करने वाले को परिनिर्वृत्त अर्थात् मुक्त कहा जाता है।
Elaboration—The right and perfect knowledge of the true form of a thing is jnana, to have faith in it is darshan and to rightly act upon it is chaaritra. The union of these three is the path of moksha (liberation) that is why each of the three is classified as one.
The smallest indivisible fraction of time is Samaya, the smallest indivisible fraction of space is pradesh (space-point) and the smallest indivisible fraction of matter is paramanu (ultimate particle). Thus with reference to form each of these is one (singular).
Atma siddhi (the state of perfection of soul) is similar for all. Therefore, Siddha (liberated or perfected scul) is one. The absence of all pervert or malignant sentiments is called parinirvana or moksha (liberation). One who attains ultimate bliss on rising above all physical and mental ailments and distortions is called pariniruritta or mukta (liberated).
पुद्गल स्वरूप-पद PUDGAL SVAROOP-PAD (SEGMENT OF MATTER)
५५. एगे सद्दे। ५६. एगे रूवे। ५७. एगे गंधे। ५८. एगे रसे। ५९. एगे फासे। ६०. एगे सुब्भिसद्दे। ६१. एगे दुन्भिसद्दे। ६२. एगे सुरूवे। ६३. एगे दुरुवे। ६४. एगे दीहे। ६५. एगे हस्से। ६६. एगे वट्टे । ६७. एगे तंसे। ६८. एगे चउरंसे। ६९. एगे पिहुले। ७०. एगे परिमंडले। ७१. एगे किण्हे। '७२. एगे णीले। ७३. एगे लोहिए। ७४. एगे हालिद्दे। ७५. एगे सुक्किल्ले। ७६. एगे सुन्भिगंधे। ७७. एगे दुन्भिगंधे। ७८. एगे तित्ते। ७९. एगे कडुए। ८०. एगे कसाए। ८१. एगे अंबिले। ८२. एगे महुरे। ८३. एगे कक्खडे जाव। ८४. एगे मउए। ८५. एगे गरुए। ८६. एगे लहुए। ८७. एगे सीते। ८८. एगे उसिणे। ८९. एगे गिद्धे। ९०. एगे लुक्खे। ___५५. शब्द एक है। ५६. रूप एक है। ५७. गन्ध एक है। ५८. रस एक है। ५९. स्पर्श एक है। ६०. शुभ शब्द एक है। ६१. अशुभ शब्द एक है। ६२. शुभ रूप एक है। ६३. अशुभ रूप एक है। ६४. दीर्घ संस्थान एक है। ६५. ह्रस्व संस्थान एक है। ६६. वृत्त (गोल) संस्थान एक है। ६७. त्रिकोण संस्थान एक है। ६८. चतुष्कोण संस्थान एक है। ६९. विस्तीर्ण संस्थान एक है। ७०. परिमण्डल संस्थान एक है। ७१. कृष्ण वर्ण एक है। ७२. नील वर्ण एक है। ७३. लोहित (रक्त) वर्ण एक है। ७४. हारिद्रवर्ण एक है। ७५. शुक्ल वर्ण एक है। ७६. शुभ गन्ध एक है। ७७. अशुभ गन्ध एक है। ७८. तिक्त रस एक है। ७९. कटुक रस एक है। ८०. कषाय (कसैला) रस एक है। ८१. आम्ल (खट्टा) रस एक है। ८२. मधुर रस
प्रथम स्थान
(17)
First Sthaan
क))))
)))
))))))5555555
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org