________________
5555555555555555555555555555555555
卐5555555555555555555555
)))))))95555558
___sthitighaat of karmas) is one. 35. Bhedan (to pierce; to reduce the i qualitative intensity of karmas; rasaghaat of karmas) is one.
३६. एगे मरणे अंतिमसारीरियाणं। ३७. एगे संसुद्धे अहाभूए पत्ते। ३६. अन्तिमशरीरी जीवों का मरण एक है। ३७. संशुद्ध यथाभूत पात्र एक है।
36. Death of antim shariri (terminal-bodied) beings is one. 37. Samshuddha (pure) yathabhuta (following conduct conforming
perfect purity) paatra (vessel) is one. ॐ विवेचन-प्रत्येक प्राणी के दो प्रकार के शरीर होते हैं-स्थूल और सूक्ष्म । मृत्यु के पश्चात् स्थूल शरीर
छूट जाता है, किन्तु सूक्ष्म शरीर (तेजस् व कर्म-शरीर) नहीं छूटता। जब तक सूक्ष्म शरीर रहता है जन्मॐ मरण का चक्र चलता ही रहता है। जब विशिष्ट साधना द्वारा सूक्ष्म तेजस् व कर्म-शरीर को छोड़ दिया # जाता है तब वह आत्मा अन्तिमशरीरी होता है। इसके पश्चात् जन्म नहीं होने से मरण भी नहीं होता। ॐ कषायमुक्त होने से विशुद्ध तथा यथाख्यातचारित्र सम्पन्न आत्मा ही एक उत्तम पात्र है।
Elaboration-Every being has two kinds of bodies-sthula (gross) and sukshma (subtle). After death the gross body is abandoned by soul but the subtle body (taijas and karman shariras or fiery and karmic bodies)
is not. As long as the subtle body remains, the cycle of life and death 4. continues. When the subtle taijas and karman shariras (fiery and karmic
bodies) are abandoned as a consequence of special spiritual practices the soul is called antim shariri (terminal-bodied). Following this there is no rebirth and thus no death.
A soul that has attained purity on being devoid of passions and is possessed of yathakhyata-charitra (conduct conforming to perfect purity) 5 is truly worthy.
३८. एगे दुक्खे जीवाणं एगभूए। ३९. एगा अहम्मपडिमा, जं से आया परिकिलेसति। ॐ ४०. एगा धम्मपडिमा, जं से आया पज्जवजाए।
३८. जीवों का दुःख एक और एकभूत है। ३९. अधर्मप्रतिमा एक है; जिससे आत्मा परिक्लेश ऊ कष्ट को प्राप्त होता है। ४०. धर्मप्रतिमा एक है, जिससे आत्मा पर्यव-जात शुद्ध होता है।
38. Duhkha (sorrow) of beings is one and ekabhuta (unified). 39. Adharma pratima (intent of wrong action or irreligiousness) is one and it causes torment to soul. 40. Dharma pratima (intent of right action or religiosity) is one and it causes purification of soul.
विवेचन-अपना कृत-कर्मफल भोगने की अपेक्षा सभी जीवों का दुःख एक समान है। वह एकभूत है 卐 अर्थात् लोहे के गोले में प्रविष्ट अग्नि के समान एकमेक है, आत्म-प्रदेशों में व्याप्त है। अधर्म और धर्म
)))))))))
)))))))))))))))))))
| स्थानांगसूत्र (१)
(14)
Sthaananga Sutra (1)
R)))
www.jainelibrary.org
For Private & Personal Use Only
Jain Education International