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8555555555555555555555555555555555555 ॐ हुई तित्तिरी पकड़कर अपनी गाड़ी में रख ली। चलते-चलते उसका एक नगरी में ठहरना हुआ। वहाँ म
किसी धूर्त ने उससे कहा-"यह शकटतित्तिरी कितने में देते हो?' तब उस शकटवाहक ने सोचा कि म यह शकट में रखी हुई तित्तिरी की माँग कर रहा है। अतः उसने कहा-"इस शकटतित्तिरी को मैं .
तर्पणलोडिका अर्थात् सत्तू के भाव से दूंगा। तब वह धूर्त तित्तिरी सहित उस गाड़ी को ले जाने लगा। 卐 गाड़ीवान ने कहा-"यह तुम क्या करते हो? गाडी तो मेरी है।" धर्त्त ने कहा-"तमने ही तो है
"शकटतित्तिरी" ऐसा कहकर इसे “तर्पणलोडिका' में देना स्वीकार किया है, इसलिए मैंने 卐 शकट-सहित तित्तिरी को लिया है, यदि तुझे इसमें सन्देह है तो साक्षी रूप में इन लोगों से पूछ लो।"
उसके पूछने पर सबने यह कहा है कि हाँ, इसने तित्तिरी-सहित ही शकट खरीदा है। तब वह गाड़ीवान : म चिंतित हुआ। इस तरह गाड़ी वाले को व्यामोह में डालना व्यंसक हेतु है।
(घ) लूषक-जिसने जिस विधि से अपने को ठगा, उसी विधि से उसे ठगना। जिस दाव-पेंच से अपने को किसी ने पराजित किया, उसी रीति से उसे पराजित करना लूषक हेतु है। जैसे-उक्त प्रकार से म ठगाया हुआ गाड़ीवान घूमते-फिरते किसी वकील से मिला, उसके समक्ष अथ से इति तक सब बातें
कह सुनाईं। वकील के कथनानुसार वह गाड़ीवान कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों को ले जाकर उस धूर्त के के घर पहुंचा और कहने लगा-“तर्पणलोडिका दो।" उसने अपनी पत्नी से कहा कि इसे “सत्तू पानी
घोलकर दे दो।" जब स्त्री सत्तू पानी घोलने लगी तब वह गाड़ीवान उस स्त्री को हाथ पकड़कर ले जाने 卐 लगा। धूर्त ने कहा-“यह क्या करते हो?'' गाड़ीवान बोला- “यह स्त्री मेरी है, क्योंकि तर्पण के निमित्त * जो सत्तू तैयार कर रही है, उसे “तर्पणलोडिका' कहते हैं। तुमने शकटतित्तिरी के बदले में म तर्पणलोडिका' देना स्वीकार किया है। इससे वह धूर्त पराजित हुआ और उसने उसकी गाड़ी वापस के कर दी। शकटतित्तिरी शब्द से गाड़ीवान ठगा गया था और “तर्पणलोडिका' शब्द से धूर्त। अतः + गाड़ीवान का हेतुभूत तर्क लूषक हेतु है।
यद्यपि न्यायशास्त्र में इस विषय का विशद विवेचन प्राप्त होता है, तथापि दार्शनिकों ने भी इस विषय की विवेचना को काफी गहराई से दिया है।
हेतु प्रमाण के चार भेद अन्य प्रकार से भी कहे हैंम (क) अत्थित्तं अस्थि सो हेऊ-पहले भंग का उदाहरण-पर्वतो वह्निमान् धूमवत्त्वात्। पर्वत में अग्नि है, ॥ ॐ धुआँ होने से। (ख) अत्थित्तं नत्थि सो हेऊ-दूसरे भंग का उदाहरण-अत्राग्निरस्ति शीतस्पर्शाभावात्। यहाँ + अग्नि है, शीत स्पर्श न होने से। (ग) नत्थित्तं अत्थि सो हेऊ-तीसरे भंग का उदाहरण-अत्राग्निर्नास्तिक ॐ शीतस्पर्शसभावात्। यहाँ अग्नि नहीं, शीत स्पर्श होने से। (घ) नत्थित्तं नत्थि सो हेऊ-चौथे भंग का है म उदाहरण-नास्त्यत्र शिंशपा वृक्षाभावात्। यहाँ शीशम नहीं, वृक्षों का अभाव होने से। (हिन्दी टीका, प्रथम 5 भाग, पृ. १००१ से १०१२)
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听听听听听听听听听听。
चतुर्थ स्थान
(595)
Fourth Sthaan
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