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(d) Hetu upanyasopanaya-answering a question by presenting the cause of the question. For example-Someone asked an ascetic-"O
ascetic ! Why do you suffer hardships of celibacy and other austerities ?" 4 The ascetic replied—"One who does not suffer hardships of celibacy and
other austerities has to suffer torments of hell and other such places."
On a further question--"O ascetic ! Why did you get initiated ?" the 45 ascetic replied—"Without getting initiated karmas cannot generally be
shed." Here the reply incorporates the original question. ___Thus jnata (example) has four categories and sixteen sub-categories. First example completely involves own doctrine, second partially involves own doctrine, third is faulty and fourth involves answer as an opponent. हेतु-भेद (सूत्र ५०४) KINDS OF HETU (APHORISM 504) ___हेतु का शाब्दिक अर्थ है-"हिनोति-गमयति ज्ञेयमिति हेतुः"- जिससे ज्ञेय पदार्थों का ज्ञान हो, उसे + हेतु कहते हैं। अथवा जो अपने साध्य के साथ अविनाभाव (अत्यन्त घनिष्ट) सम्बन्ध वाला होता है, वही
हेतु कहलाता है। हेतु के मूलतः चार भेद हैंको (क) यापक-जो हेतु वादी की काल-यापना करता है, उसे यापक कहते हैं। काल-यापक हेतु वही ॐ होता है जो अधिक विशेषणों वाला होता है। उसे समझने में काल-यापन होता है, वह शीघ्रता से ध्यान में नहीं आता। इसे “वितंडावाद' भी कहा जा सकता है।
(ख) स्थापक-जो हेतु पर-पक्ष का खण्डन कर स्वपक्ष की स्थापना करे, उसे स्थापक हेतु कहते हैं। * “अग्निस्तत्रधूमात्।” “वहाँ अग्नि है, क्योंकि वहाँ धुआँ है।' यहाँ धूम रूप हेतु ने अग्नि का ज्ञान शीघ्र
करा दिया है, अतः धूम स्थापक हेतु है। 卐 किसी धूर्त परिव्राजक ने प्रत्येक ग्राम या नगर में ऐसी प्ररूपणा करनी प्रारम्भ कर दी कि-“लोक
के मध्य भाग में दिया गया दान अनन्त फलदायक होता है। यह लोक का मध्य है, इस रहस्य को केवल + मैं ही जानता हूँ।" तब उसकी मान्यता को खंडित करने के लिए किसी विज्ञ व्यक्ति ने कहा-“हे
परिव्राजक ! लोक का मध्य भाग तो एक ही होता है, फिर वह प्रत्येक ग्राम में अलग-अलग रूप में कैस 5 सम्भावित हो सकता है? अतएव तुम्हारे कथनानुसार लोक का मध्य भाग युक्ति संगत नहीं है।" इस 4 प्रकार उसी के कथन से उसकी असत्यता को पकड़ लिया।
(ग) व्यंसक-जिस हेतु के द्वारा वादी को असमंजस में डाला जाये, उसे व्यंसक हेतु कहते हैं। जैसे+ कोई गाड़ीवान अपनी गाड़ी में अनाज भरकर किसी दूसरे गाँव में जा रहा था। उसने मार्ग में एक मरी
स्थानांगसूत्र (१)
(594)
Sthaananga Sutra.(1)
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