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________________ 05***த***தமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமி************* 卐 (ख) प्रतिलोम - जिसके सुनने से प्रतिकूलता का भाव जगे, जैसे-शठं प्रति शाठ्यं कुमात्- धूर्त्त के प्रति फ 卐 5 धूर्त्तता का व्यवहार करना यह भावना जागृत हो, उसे प्रतिलोम आहरणतद्दोष कहा जाता है। 卐 (ग) आत्मोपनीत - जहाँ परमत को दूषित करने के लिए दिए गये दृष्टान्त से अपना ही पक्ष दूषित हो 5 जाये, यह आत्मोपनीत कहलाता है। जैसे- किसी सभा में किसी सदस्य ने कहा- "यहाँ सभी मूर्ख हैं ।" 'सभी' कहने पर वक्ता स्वयं भी मूर्ख सिद्ध हो जाता है। 卐 卐 अथवा किसी राजा ने किसी पिंगल नामक नैमित्तिक से पूछा कि "अमुक तालाब यत्न करने पर भी ठीक नहीं होता, क्या उपाय किया जाए ?" तब नैमित्तिक ने कहा- "राजन् ! यह तालाब एक अच्छे 5 पुरुष की बलि चाहता है, जहाँ तालाब टूटा है वहाँ अमुक गुण व लक्षण वाले पुरुष को जीवित गाड़ा जाये तभी यह सभी प्रकार से ठीक हो सकेगा।' राजा ने मंत्री से ऐसा पुरुष ढूँढ़ने को कहा। मंत्री ने 5 कहा- "महाराज ! इस नैमित्तिक से बैठकर सुयोग्य गुण सम्पन्न पुरुष और कौन मिलेगा।" तब राजा ने अपने भृत्यों के द्वारा उस नैमित्तिक की बलि तालाब के निमित्त दे दी। इस तरह अपने ही विवेकहीन फ वचनों से नैमित्तिक को मरना पड़ा। इस प्रकार सभी दृष्टान्त आहरणतद्दोष के अन्तर्गत 5 आत्मोपनीत हैं। Jain Education International फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ (587) 卐 (घ) दुरुपनीत - जिसके बोलने से अपनी ही नीचता सिद्ध हो, उसे दुरुपनीत ज्ञात कहते हैं। जिस 5 प्रकार किसी ने एक भिखारी से पूछा - "हे भिक्षुक ! तेरी कंथा में ये जगह-जगह छेद क्यों हो रहे हैं ?" उसने उत्तर दिया- "यह कंथा नही, यह तो मछलियाँ पकड़ने का जाल है।" "तो क्या तुम मछली भी 5 खाते हो ?" "हाँ, वह बिना मद्य के अच्छी नहीं लगतीं।" "तो क्या तुम मद्य भी पीते हो ?" "हाँ, उसे वेश्या के साथ पीता हूँ, अकेला नहीं।" "तो क्या वेश्या के यहाँ भी जाते हो ?" "हाँ, शत्रुओं के गले पर पैर रखकर जाता हूँ।” “क्या तुम्हारे शत्रु भी हैं ?" "हाँ, जिनके घर में सेंध लगाता हूँ, वे मेरे शत्रु फ्र बन जाते हैं।" "तो क्या तुम चोरी भी करते हो ?" "हाँ, जुए के लिए सब कुछ करना ही पड़ता है।" "तुम ऐसा क्यों करते हो ?" "क्योंकि मैं दासी का पुत्र हूँ।" प्रश्नकर्त्ता ने तो सामान्य बात पूछी, किन्तु भिखारी ने इतना असंगत उत्तर दिया कि वह स्वयं ही नीच सिद्ध हो गया। For Private & Personal Use Only Fourth Sthaan 卐 ४. उपन्यासोपनय-वादी द्वारा अपने मत की पुष्टि के लिए जो कुछ कहा जाता है, उसका निराकरण 5 करके पक्ष रूप में जो स्वमत स्थापित किया जाता है, उसे उपन्यासोपनय कहते हैं। इसके चार भेद हैं(क) तवस्तुक - जिसमें पर के द्वारा दिया गया उत्तर ही उत्तर रूप हो, वह तवस्तुक कहलाता है। जैसे- किसी ने कहा- "मेरे गाँव में एक बहुत बड़ा तालाब है, उसके तट पर एक बहुत बड़ा वृक्ष है, उसके पत्ते जितने जल में गिरते हैं। सब जलचर जीवों के रूप में परिणत हो जाते हैं और जो पत्ते स्थल पर गिरते हैं वे सब स्थलचर जीवों के रूप में परिणत हो जाते हैं।" तब किसी अन्य व्यक्ति ने पूछा - "जो पत्ते दोनों के मध्य में गिरते हैं उनकी क्या दशा होती है ?" तुम्हारे कथन में तो वे मध्य में गिरे पत्ते मिश्रित रूप होने चाहिए; किन्तु ऐसा नहीं होता दीखता है, इसलिए यह बात मिथ्या है। चतुर्थ स्थान फ़फ़फ़ 卐 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002905
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages696
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size21 MB
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