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शिष्यों को उपालंभ द्वारा शिक्षित करना। (३) पृच्छा-आहरण-तद्देश-प्रश्नों-प्रतिप्रश्नों के द्वारा निर्णय फ़ करना। (४) निःश्रावचन-आहरण-तद्देश-एक के माध्यम से दूसरे को शिक्षा या प्रबोध देना।
501. Aharanataddesh jnata is of four kinds-(1) Anushisht 55 aharanataddesh—to establish own doctrine by praising virtues. 41 (2) Upalambh ahuranataddesh--to edify disciples, who have committed
mistake, through reproach. (3) Prichchha aharanataddeshếto arrive at
a conclusion through questions and counter questions. 9 (4) Nihshravachan aharanataddesh-to edify or enlighten someone
through a third person. __ ५०२. आहरणतद्दोसे चउबिहे पण्णत्ते, तं जहा-अधम्मजुत्ते, पडिलोमे, अत्तोवणीते, दुरुवणीते।
५०२. आहरण-तद्दोष ज्ञात (दृष्टान्त) चार प्रकार का है। (१) अधर्मयुक्त-आहरण-तद्दोष-अधर्म बुद्धि को उत्पन्न करने वाला दृष्टान्त। (२) प्रतिलोम-आहरण-तद्दोष-अपसिद्धान्त की प्रतिपादक अथवा म प्रतिकूल आचरण की शिक्षा देने वाला दृष्टान्त। (३) आत्मोपनीत-आहरण-तद्दोष-पर-मत में दोष
दिखाने के लिए प्रयुक्त किया गया किन्तु स्वमत को दूषित करने वाला दृष्टान्त। (४) दुरुपनीत-आहरणमतदोष-जिस दृष्टान्त का उपसंहार दोषयुक्त हो।
502. Aharanataddoshjnata is of four kinds-(1) Adharma yukta aharanataddosh-an example giving rise to evil thoughts. (2) Pratilom
aharanataddosh-an example teaching wrong doctrine or bad conduct. ॐ (3) Atmopaneet aharanataddosh-an example used for showing faults of
other doctrine but tarnishing own doctrine. (4) Durupaneet aharanataddosh-an example with a faulty conclusion.
५०३. उवण्णासोवणए चउबिहे पण्णत्ते, तं जहा-तव्वत्थुते, तदण्णवत्थुते, पडिणिभे, हेतू। ॐ ५०३. उपन्यासोपनय-ज्ञात (दृष्टान्त) चार प्रकार का होता है-(१) तद्-वस्तुक उपन्यासोपनय-वादी + के द्वारा किये गये हेतु से उसका ही निराकरण करना। (२) तदन्यवस्तुक-उपन्यासोपनय-प्रस्तुत की गई म वस्तु से भिन्न वस्तु में भी प्रतिवादी की बात को पकड़कर उसे हराना। (३) प्रतिनिभ-उपन्यासोपनय* वादी द्वारा प्रयुक्त हेतु के समान दूसरा हेतु प्रयोग करके उसके हेतु को असिद्ध करना। (४) हेतु5 उपन्यासोपनय-हेतु बताकर अन्य के प्रश्न का समाधान कर देना। # 503. Upanyasopanaya jnata is of four kinds-(1) Tad-vastuk
upanyasopanaya—to counter a speaker by using his own argument. (2) Tadanya-vastuk upanyasopanaya—to counter a speaker by shifting
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| स्थानांगसूत्र (१)
(582)
Sthaananga Sutra (1)
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