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for matter and living beings (jiva) to move beyond that point. (4) Natural limit—The sun, the moon and other heavenly bodies move within the limits of their natural orbits, in the same way soul and matter are governed by the natural limits of their movement within the Lok and are unable to move beyond Lokant. ज्ञात-पद JNATA-PAD (SEGMENT OF EXAMPLE)
४९९. चउबिहे णाए पण्णत्ते, तं जहा-आहरणे, आहरणतद्देसे, आहरणतद्दोसे, उवण्णासोवणए। ___ ४९९. ज्ञात (दृष्टान्त) चार प्रकार के होते हैं-(१) आहरण-सामान्य दृष्टान्त। जिस दृष्टान्त में वक्ता का भाव पूर्ण रूप में घटित होता हो। (२) आहरणतद्देश-एकदेशीय दृष्टान्त। जिस दृष्टान्त में भाव एक अंश में घटित होता हो। (३) आहरणतद्दोष-दोषयुक्त दृष्टान्त। (४) उपन्यासोपनय-वादी के द्वारा किये गये वाद के खण्डन के लिए प्रतिवादी के द्वारा दिया गया विरुद्धार्थक उपनय।
499. Jnata (examples) are of four kinds—(1) acharan-simple example in which the idea of the speaker is completely reflected.
(2) Aharanataddesh-partial example in which only a portion of the idea __is reflected. (3) Aharanataddosh-faulty example. (4) Upanyasopanaya
contradictory example given by the opponent to counter the argument of the speaker.
५००. आहरणे चउबिहे पण्णत्ते, तं जहा-अवाए, उवाए, ठवणाकम्मे, पुडुप्पण्णविणासी।
५००. आहरण दृष्टान्त चार प्रकार का होता है-(१) अपाय-दृष्टान्त-हेयधर्म का ज्ञापक दृष्टान्त। (२) उपाय-दृष्टान्त-इच्छित वस्तु की प्राप्ति का उपाय बताने वाला दृष्टान्त। (३) स्थापनाकर्म-दृष्टान्तॐ स्वमत की स्थापना के लिए प्रयुक्त दृष्टान्त। (४) प्रत्युत्पन्नविनाशी-दृष्टान्त-तत्काल उत्पन्न दोष काफ + निवारण करने के लिए दिया जाने वाला दृष्टान्त। $ 500. Aaharan jnata (simple example) is of four kinds—(1) Apaya 4 + drishtant-an example conveying ignoble. (2) Upaaya drishtant-an 5
example showing way of acquiring a desired thing. (3) Sthaapanakarma drishtant-an example used for establishing one's own doctrine. (4) Pratyutpanna vinashi drishtant-an example given for correcting an instantaneous fault. __ ५०१. आहरणतद्देसे चउब्विहे पण्णत्ते, तं जहा-अणुसिट्ठी, उवालंभे, पुच्छा, णिस्सावयणे।।
५०१. आहरण-तद्देश ज्ञात (दृष्टान्त) चार प्रकार का होता है-(१) अनुशिष्टि-आहारणतद्देश+ सद्गुणों की प्रशंसा कर स्वमत को पुष्ट करना। (२) उपालम्भ-आहरण-तद्देश-अपराध करने वाले
चतुर्थ स्थान
(581)
Fourth Sthaan
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