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451 479. Prakanthak (horse) are of four kinds—(1) Some horse is rupa i sampanna (beautiful) and not jaya sampanna (instrumental in victory).
(2) Some horse is jaya sampanna and not rupa sampanna. (3) Some
horse is both rupa sampanna and jaya sampanna. (4) Some horse is s neither rupa sampanna nor jaya sampanna.
Purush (men) are also of four kinds(1) Some man is rupa sampanna (beautiful) and not.jaya sampanna (victorious). (2) Some man
is jaya sampanna and not rupa sampanna. (3) Some man is both rupa i 卐 sampanna and jaya sampanna. (4) Some man is neither rupa sampanna 4i nor jaya sampanna.
विवेचन-संस्कृत भाषा में घोड़ों के लिए दो शब्द आते हैं-कन्थक-सामान्य जाति के घोड़े, प्रकन्थकॐ विशेष जाति के घोड़े। इसी प्रकार घोड़ों की चित्राली, अरबी, उराली, सिंधी आदि अनेक जातियाँ (नस्लें) में होती हैं। जाति के कारण घोड़ों के गुण भी भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे-अरबी घोड़ा भागने में तेज नहीं ॐ होता, किन्तु निर्भीक होता है। उराली घोड़ा भागने में जितना तेज होता है, उतना निर्भीक नहीं होता। ।
(हिन्दी टीका, पृष्ठ ९७७ से ९८०) 4 Elaboration-In Sanskrit language there are two terms for horses
kanthak or horses of ordinary breed and prakanthak or horses of special breed. There are numerous such special breeds, namely Chitrali, Arabian, Urali, Sindhi etc. Based on breed, horses have different
qualities. For example an Arabian horse is not fast but fearless. Urali 9 horse is fast but not so fearless.
In these aphorisms various facets of human character, behaviour and % nature have been explained using horse as a metaphor. (Hindi Tika, pp.
977-980)
सिंह-शृगाल-पद SIMHA-SHRIGAAL-PAD (SEGMENT OF LION AND JACKAL) ॐ ४८०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सीहत्ताए णाममेगे णिक्खंते सीहत्ताए विहरइ,
सीहत्ताए णाममेगे णिक्खंते सीयालत्ताए विहरइ, सीयालत्ताए णाममेगे णिक्खंते सीहत्ताए विहरइ,
सीयालत्ताए णाममेगे णिक्खंते सीयालत्ताए विहरइ। ॐ ४८०. [प्रव्रज्या ग्रहण कर उनका पालन करने वाले] पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई पुरुष
सिंहवृत्ति (वीरता) से निष्क्रांत-प्रव्रजित होता है और सिहंवृत्ति से ही विचरता है। (२) कोई सिंहवृत्ति से ॐ प्रव्रजित होता है, किन्तु शृगालवृत्ति (दीनता) से विचरता है। (३) कोई शृगालवृत्ति से निष्क्रान्त होता है,
किन्तु सिंहवृत्ति से विचरता है। (४) कोई शृगालवृत्ति से निष्क्रान्त होता है और शृगालवृत्ति से ही ॐ विचरता है।
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| स्थानांगसूत्र (१)
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Sthaananga Sutra (1)
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