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________________ मऊ5 5 5555)))))))) )) ))) )) 听听听听听听听听听听听听听听 听听听听听听听F$ $$$$$$$$$$$$$$$ ॐ ४७८. चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा-बलसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपण्णे, जयसंपण्णे णाममेगें णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो जयसंपण्णे। म एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-बलसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपण्णे, जयसंपण्णे मीणाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो जयसंपण्णे। म ४७८. घोड़े चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई घोड़ा बलसम्पन्न होता है, जयसम्पन्न नहीं होता। (२) कोई जयसम्पन्न होता है, बलसम्पन्न नहीं। (३) कोई बलसम्पन्न भी होता है और जयसम्पन्न भी। (४) + कोई न बलसम्पन्न ही होता है और न जयसम्पन्न ही। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई पुरुष बलसम्पन्न होता है, किन्तु जयसम्पन्न नहीं होता। (२) कोई जयसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं। (३) कोई बलसम्पन्न भी होता है और में जयसम्पन्न भी। (४) कोई न बलसम्पन्न और न जयसम्पन्न ही होता है। + 478. Prakanthak (horse) are of four kinds (1) Some horse is bal sampanna (strong) and not jaya sampanna (instrumental in victory). 41 (2) Some horse is jaya sampanna and not bal sampanna. (3) Some horse 卐 is both bal sampanna and jaya sampanna. (4) Some horse is neither bal sampanna nor jaya sampaina. Purush (men) are also of four kinds—(1) Some man is bal sampanna 45 (strong) and not jaya sampanna (victorious). (2) Some man is jaya 卐 sampanna and not bal sampanna. (3) Some man is both bal sampanna 41 and jaya sampanna. (4) Some man is neither bal sampanna nor jaya sampanna. रूप-पद RUPA-PAD (SEGMENT OF BEAUTY) ४७९. चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा-रूवसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपण्णे ४। [जयसंपण्णे ॐणाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे रूवसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो रूवसंपण्णे णो जयसंपण्णे ]। 4 एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-रूवसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपण्णे, [जयसंपण्णे मणाममेगे णो रूवसंपण्णे, एगे स्वसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो रूवसंपण्णे णो जयसंपण्णे ]। 卐 ४७९. घोड़े चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई घोड़ा रूपसम्पन्न होता है, किन्तु जयसम्पन्न नहीं होता। (२) कोई जयसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं। (३) कोई रूपसम्पन्न भी होता है और जयसम्पन्न फ़ भी। (४) कोई न रूपसम्पन्न है और न जयसम्पन्न ही होता है। # इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु जयसम्पन्न नहीं। (२) कोई जयसम्पन्न तो होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं। (३) कोई रूपसम्पन्न भी और जयसम्पन्न भी होता है। (४) कोई न रूपसम्पन्न और न जयसम्पन्न ही होता है। चतुर्थ स्थान (569) Fourth Sthaan 四步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002905
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages696
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size21 MB
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